बुलडोज़र एक्शन अवैध, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने आज बुलडोजर एक्शन के संदर्भ में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें यह घोषणा की गई कि राज्य सरकारें किसी भी व्यक्ति की संपत्ति को मात्र आरोप के आधार पर नष्ट नहीं कर सकतीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई संविधान के तहत व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन है। अदालत ने इस पर जोर दिया कि जब तक कोई व्यक्ति दोषी साबित नहीं हो जाता, केवल आरोप के आधार पर उसकी संपत्ति नष्ट करना अवैध है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारों और उनके अधिकारियों के पास यह अधिकार नहीं है कि वे किसी व्यक्ति को दोषी ठहराकर उसकी संपत्ति को नष्ट करें।
सुप्रीम कोर्ट के आज के इस ऐतिहासिक फैसले ने देश में बुलडोज़र कार्रवाइयों को लेकर एक नई दिशा प्रदान की है। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी राज्य सरकार या सरकारी अधिकारी के पास यह अधिकार नहीं है कि वे किसी भी व्यक्ति की संपत्ति को केवल शक या आरोप के आधार पर ध्वस्त कर सकें। अदालत ने इस बात को संविधान में निहित मौलिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा की दृष्टि से एक गंभीर उल्लंघन बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यह एक न केवल व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह समाज में कानून की सर्वोच्चता की अवधारणा को भी खतरे में डालता है।
अदालत का यह फैसला उन अनेक घटनाओं के संदर्भ में आया है जहां राज्य सरकारों ने विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक कारणों से नागरिकों की संपत्तियों को बुलडोज़र के माध्यम से नष्ट किया है। अक्सर, ये कार्रवाइयाँ विशेष समुदायों और अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ की गई हैं, जिससे न्याय के सन्देश पर सवाल उठे हैं। कई मानवाधिकार संगठनों ने इस प्रकार की कार्रवाइयों की आलोचना की है, इसे धार्मिक भेदभाव और मानवीय अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा है। अदालत ने यह भी कहा कि बुलडोज़र कार्रवाई को केवल तब ही मंजूरी मिलनी चाहिए जब कानून के तहत विधिवत रूप से दोष सिद्ध किया गया हो।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों और उनके अधिकारियों को चेतावनी दी है कि वे नागरिकों की संपत्तियों को ध्वस्त करने से पहले वैधानिक प्रक्रिया का पालन करें और किसी को भी दोषी ठहराने के लिए न्यायिक समीक्षा के बिना कोई कदम न उठाएं। न्यायालय ने सुझाव दिया कि किसी भी प्रकार की ध्वस्त करने की कार्रवाई पर न्यायपालिका की निगरानी आवश्यक होनी चाहिए ताकि किसी प्रकार के दुरुपयोग या गैरकानूनी कार्रवाई से बचा जा सके। अदालत ने यह भी सुझाया कि एक ऑनलाइन पोर्टल स्थापित किया जाए, जहां प्रभावित व्यक्तियों को नोटिफिकेशन प्राप्त हो सके और कोई भी विध्वंस का कार्य पारदर्शिता के साथ किया जा सके।
इस फैसले का महत्व न केवल वर्तमान घटनाओं तक सीमित है, बल्कि यह भविष्य में होने वाली किसी भी प्रकार की मनमानी कार्रवाई पर रोक लगाने में सहायक होगा। इसके माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय न्याय प्रणाली में कानून का शासन सर्वोपरि है और किसी भी प्रकार की कार्रवाई बिना ठोस प्रमाण और प्रक्रिया के नहीं होनी चाहिए।