बुलडोज़र कार्रवाई प्रशासन की ज्यादती है: जस्टिस बी. वी. नागरत्ना
सुप्रीम कोर्ट की जज, जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले की प्रशंसा की है, जिसमें राज्य प्रशासन द्वारा आरोपियों के खिलाफ सज़ा के तौर पर बुलडोज़र से की गई कार्रवाई की निंदा की गई है। उन्होंने कहा कि अदालत के फैसले से पहले आरोपियों की संपत्तियों को ढहाना हाल के वर्षों में प्रशासनिक अत्याचार का स्पष्ट उदाहरण है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में कहा गया है कि राज्य प्रशासन किसी व्यक्ति के आपराधिक रिकॉर्ड के आधार पर उसके घर को नहीं गिरा सकता। बुलडोज़र से इस तरह की कार्रवाई को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया गया है।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हाल के वर्षों में इस तरह की कार्रवाइयां कार्यकारी (एग्जीक्यूटिव) अत्याचार का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यह बयान उन्होंने चेन्नई में आयोजित ‘जस्टिस एस. नटराजन शताब्दी स्मारक व्याख्यान’ के दौरान दिया। अपनी इस स्पीच में उन्होंने विभिन्न ट्रिब्यूनल की संरचना और उनकी प्रासंगिकता पर भी सवाल उठाए।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि ट्रिब्यूनल सेवानिवृत्त जजों को रोजगार में बने रहने का अवसर प्रदान कर सकते हैं, लेकिन इन संस्थानों की संरचना, विशेष रूप से इनके तकनीकी या अन्य सदस्यों की योग्यता को लेकर सवाल खड़े होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ट्रिब्यूनल के दौर में लगातार यह कहा जाता है कि कार्यकारी (एग्जीक्यूटिव) निर्णय के क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है।
उन्होंने आगे कहा कि ट्रिब्यूनल में कार्यकारी पूर्वाग्रह रखने वाले व्यक्तियों की नियुक्ति कर न्यायिक कार्यों को हड़पने का आरोप लगता है। इसका मुख्य उद्देश्य हाईकोर्ट पर मामलों का दबाव कम करना था। शुरुआत में सेवा ट्रिब्यूनल, केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल जैसी संस्थाओं की स्थापना की गई थी, लेकिन कुछ राज्यों में यह प्रयोग असफल हो गया और मामले वापस हाई कोर्ट में जाने लगे।
उन्होंने यह भी कहा कि ट्रिब्यूनल कभी-कभी सेवानिवृत्त जजों के पुनर्वास के लिए एक अच्छा अवसर हो सकता है, लेकिन इसके तकनीकी या अन्य सदस्यों की पहचान को लेकर सवाल बने रहते हैं। भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की संभावना वाली जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में विभिन्न विचारों को महत्व दिया जाना चाहिए, न कि केवल लोकप्रिय राय को।