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बिहार: क्या ‘तीर’ ही ‘लालटेन’ है और ‘लालटेन’ ही ‘तीर’ है?

बिहार: क्या ‘तीर’ ही ‘लालटेन’ है और ‘लालटेन’ ही ‘तीर’ है?

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक माहौल में एक नारा असाधारण रूप से चर्चा का विषय बना हुआ है — “तीर ही लालटेन है और लालटेन ही तीर है।” यह नारा राज्य की राजनीति में गठबंधनों की नई दिशा, वैचारिक नज़दीकी और बदलते समीकरणों की ओर इशारा करता है।

राजद (RJD) और जदयू (JDU) के बीच भले ही वर्षों से राजनीतिक प्रतिस्पर्धा रही हो, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनके मतदाताओं में कहीं न कहीं एकजुटता दिखाई दे रही है। दोनों दल अपनी-अपनी चुनावी मुहिम अलग-अलग प्रतीकों — लालटेन (RJD) और तीर (JDU) — के साथ चला रहे हैं, लेकिन आम जनता की चर्चाओं, गलियों-मोहल्लों की बातों और सोशल मीडिया पर यह नारा तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। यह नारा इन दलों के बीच संभावित गठजोड़, व्यावहारिक समझौते और साझा हितों की प्रतीक बन गया है।

भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नीतीश कुमार को आगे न करने से जदयू कार्यकर्ताओं में जो नाराज़गी थी, उसे पहले चरण के मतदान के बाद और बल मिला है। यही वजह है कि चाय की दुकानों, चौक-चौराहों और सोशल मीडिया पर यह चर्चा जोरों पर है कि — “लालटेन ही तीर है और तीर ही लालटेन है। हालाँकि यह अब तक केवल अफ़वाह या मज़ाकिया “शगूफ़ा” माना जा रहा है, क्योंकि इसके समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं हैं।

इस चर्चा की कोई ठोस बुनियाद नहीं है, बहुत लोग अपनी इच्छानुसार बातें फैला रहे हैं। जो लोग महागठबंधन की सरकार बनते देखना चाहते हैं, उन्हें लगता है कि नीतीश कुमार भाजपा का साथ छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि इस तरह की बातों का तब तक कोई अर्थ नहीं जब तक जमीनी आँकड़े न आ जाएँ। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर ऐसी बातें चल रही हैं तो उसकी वजह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का बयान और 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग़ पासवान द्वारा नीतीश कुमार को पहुंचाया गया नुक़सान है।

मुफ्फरपुर, दरभंगा, वैशाली और समस्तीपुर का दौरा करने के बाद पटना लौटे दो लोगों ने बताया कि दरभंगा में कई लोगों से “लालटेन ही तीर है और तीर ही लालटेन है” वाली बात सुनी। उन्होंने कहा कि, सिवान के एक व्यक्ति से बातचीत में भी यह महसूस हुआ कि “चाचा–भतीजे” (नीतीश–तेजस्वी) के बीच कोई संवाद चल रहा है।

राजनीतिक विश्लेषक मणिकांत ठाकुर के अनुसार, यह सब महागठबंधन की तरफ़ से फैलाया गया प्रचार है। उनका कहना था कि, इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि, नीतीश कुमार एनडीए को कमजोर करना चाहते हैं या चुनाव के बाद महागठबंधन में शामिल होकर मुख्यमंत्री बन जाएंगे। ठाकुर ने कहा कि. अगर इस बार तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नहीं बने तो लालू प्रसाद यादव मानसिक रूप से बेहद व्यथित हो जाएंगे।

जदयू के तीन नेताओं से जब इस बारे में बात की गई, तो एक ने कहा कि “बात में दम है”, दूसरे ने इनकार किया कि ऐसा कुछ नहीं है, और तीसरे ने कहा कि “अब इसकी जरूरत नहीं रही, क्योंकि समय के साथ भाजपा का रवैया बदल गया है। उन्होंने बताया कि फरवरी में प्रधानमंत्री ने नीतीश कुमार को “लाड़ला मुख्यमंत्री” कहा था, लेकिन उसके बाद गृहमंत्री अमित शाह का बयान आया और उसका असर हुआ। भाजपा नेताओं के सुर बदलने लगे और अंततः एनडीए ने स्वीकार कर लिया कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे।

जदयू के एक करीबी नेता ने कहा कि एक समय कोइरी और कुर्मी समाज भाजपा और चिराग़ पासवान से नाराज़ थे, लेकिन उनकी नाराज़गी अब कम हो गई है। नीतीश कुमार ने छठ के दिन चिराग़ पासवान के घर जाकर एक संदेश दे दिया। अब कोइरी और कुर्मी समाज यह सोच रहा है कि पहले अपनी सरकार बनाओ, फिर आगे देखा जाएगा।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह नारा जदयू और “इंडिया गठबंधन” के संभावित चुनाव बाद के समीकरण का प्रतीक भी माना जा रहा है। हालांकि यह संभावना अभी दूर की कौड़ी लगती है, लेकिन असल वजह भाजपा का दृष्टिकोण है। भाजपा ने इस चुनाव में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया, और महाराष्ट्र की तरह चुनावी रणनीति अपनाई — उससे नीतीश कुमार की राजनीतिक ज़मीन डगमगा गई है।

नीतीश के पारंपरिक समर्थक भाजपा को वोट देने से हिचक रहे हैं। यह स्थिति उन सीटों पर ज्यादा दिख रही है, जहां राजद का सीधा मुकाबला भाजपा या लोजपा (LJP) से है। ऐसी सीटों पर जदयू का वोट भाजपा या लोजपा को न जाकर राजद की ओर शिफ्ट हो रहा है। यह बदलाव खास इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि लंबे समय से जदयू भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार चला रही है। लेकिन चुनाव अभियान के दौरान पर्दे के पीछे यह चर्चा तेज़ रही कि, भाजपा और लोजपा की रणनीति जदयू की राजनीतिक हैसियत को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।

स्पष्ट है कि यह नारा केवल चुनावी जोश का नतीजा नहीं है, बल्कि यह ज़मीनी राजनीतिक वास्तविकता को भी दर्शाता है — खासकर उन इलाकों में जहां जदयू के मतदाता भाजपा के खिलाफ नाराज़गी दिखा रहे हैं और प्रतिक्रिया स्वरूप महागठबंधन के उम्मीदवारों को वोट दे रहे हैं। जदयू के मतदाताओं को यह यकीन हो गया है कि अगर एनडीए को बहुमत मिला तो भाजपा सरकार पर पूरी तरह कब्जा कर लेगी और जदयू को हाशिए पर धकेल देगी, यहाँ तक कि पार्टी के अस्तित्व पर भी खतरा हो सकता है। इसी कारण वे भाजपा को वोट नहीं देना चाहते।

भाजपा ने जिस तरह चिराग़ पासवान को नीतीश कुमार की ताकत घटाने के लिए इस्तेमाल किया, वह बात जदयू के मतदाताओं की नजर में साफ है। जदयू के वोटर संगठित, वफादार और ब्लॉक स्तर पर मजबूत हैं — ये मतदान प्रतिशत और परिणाम दोनों को बदलने की क्षमता रखते हैं। यही वजह है कि जहां भाजपा या लोजपा के उम्मीदवार हैं, वहां जदयू के पुराने और वफादार वोटर राजद की ओर झुकते नजर आ रहे हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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