ISCPress

अपराध साबित होने तक निर्दोष समझना क़ानूनन, बुनियादी मानव अधिकार: केरल हाईकोर्ट

अपराध साबित होने तक निर्दोष समझना क़ानूनन, बुनियादी मानव अधिकार: केरल हाईकोर्ट

केरल: केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि “अपराध साबित होने तक निर्दोष समझना सिर्फ एक कानूनी सिद्धांत ही नहीं है, बल्कि किसी भी व्यक्ति का बुनियादी मानव अधिकार भी है।” कोर्ट ने हाल ही में बनाए गए उन कठोर कानूनों पर भी इसके लागू होने की वकालत की है, जिनमें किसी पर आरोप लगते ही उसे अपराधी समझ लेने का प्रावधान होता है। केरल उच्च न्यायालय ने इस अहम फैसले में स्पष्ट किया कि उन कानूनों को भी संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए, जो इस सिद्धांत से छूट प्राप्त हैं।

गौरतलब है कि सामान्य सिद्धांत यह है कि किसी पर आरोप लगाने पर उसे साबित करने की जिम्मेदारी आरोप लगाने वाले की होती है। इसी सिद्धांत के तहत पुलिस या सुरक्षा एजेंसियां जब किसी व्यक्ति को आरोपी बनाती हैं, तो यह उनकी जिम्मेदारी होती है कि वे आरोप को कोर्ट में साबित करें। हालांकि, यूएपीए और इस जैसे अन्य कई कठोर कानूनों को इस सिद्धांत से अलग रखा गया है। इन कानूनों के तहत आरोप लगते ही आरोपी को अपराधी मान लिया जाता है और अपराध साबित करने की जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष पर न होकर आरोपी पर यह जिम्मेदारी आ जाती है कि वह खुद को निर्दोष साबित करे।

जस्टिस राजा विजय राघवन और जस्टिस जी. गिरीश पर आधारित केरल हाईकोर्ट की दो-सदस्यीय बेंच ने इन कानूनों के संबंध में कहा है कि अगर किसी विशेष कानून को इस सिद्धांत से अलग रखा गया है और वह आरोपी के अपराध को पहले से ही मानता है, तब भी उस कानून को संविधान में अनुच्छेद 14 और 21 के तहत दी गई गारंटी के अनुसार विवेक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मापदंडों पर खरा उतरना चाहिए।

अदालत ने यह बातें हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्तियों की अपील पर निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए कही। भारत में जिन कानूनों को “अपराध साबित होने तक निर्दोष” के सिद्धांत से अलग रखा गया है, उनमें आपराधिक गतिविधियों का रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) मुख्य हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के मामलों में आरोपियों को जमानत देते हुए इन कानूनों के तहत भी “जमानत नियम, जेल अपवाद” के सिद्धांत पर अमल करने की वकालत की है।

Exit mobile version