सिक्किम आपदा के 72 घंटे बाद भी सेना के जवान और आम लोग लापता
सिक्किम में आये भयंकर आपदा से निपटने की चुनौती बड़ी हो रही है। त्रासदी के 72 घंटे बाद भी सेना के जवान और आम लोग लापता हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या आपदा प्रभावित इलाकों में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम फंक्शनल थे? क्या सेना के यूनिट को इस आपदा की संभावना की चेतावनी दी गयी थी?
सिक्किम में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट के बाद बड़ी बाढ़ त्रासदी को लेकर कई बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। जिस तरह से भारतीय सेना के साथ-साथ आम नागरिक इसकी चपेट में आये, उससे साफ है कि उन्हें इस खतरे का कोई अंदेशा नहीं था। तीस्ता नदी के जलस्तर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी को लेकर कोई चेतावनी उन्हें नहीं दी गई थी।
अमृता विश्व विद्यापीठम की असिस्टेंट प्रोफेसर एस एन रम्या ने NDTV से कहा, “2019 में मैंने 2013 की अपनी रिसर्च को फॉलो किया था. 2000 से 2015 तक लेक की लंबाई आधा किलोमीटर बढ़ गई थी। जो गहराई है, वो औसतन 50 मीटर तक हो गयी है। सिक्किम में जो लेक फटा है, उसके बारे में हमने प्रेडिक्ट किया था। हमने कहा था कि इसकी वजह से 19 मिलियन क्यूबिक मीटर तक पानी रिलीज़ हो सकता है. हमने कहा था कि ये लेक खतरे में हैं। हमने अर्ली वार्निंग सिस्टम रिकमेंड किया था।
अब सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेमसिंह तमांग ने वैज्ञानिकों की इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए शुक्रवार को कहा, “पिछली सरकार ने इस रिपोर्ट पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं की। सीएम ने NDTV से कहा, “2013 की रिपोर्ट पिछली सरकार को दी गई है, लेकिन उन्होंने इसपर पहल नहीं की। अब इस हादसे के बाद हमारी टेक्निकल कमिटी इस हादसे की जांच करेगी।
फिलहाल इन सवालों के बीच आपदा का खतरा अभी सिक्किम पर अभी टला नहीं है। मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल डॉ. एम मोहपात्रा ने कहा, “ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट के इंपैक्ट की मॉनिटरिंग और प्रेडिक्शन करना ज़रूरी है। हमें मौसम की बेहतर मॉनिटरिंग करनी होगी”।