अखिल भारतीय यादव महासभा ने खुद को सपा से अलग किया
आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव लगे हुए हैं। इस बार पार्टी यूपी में INDIA गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है। हालांकि इंडिया गठबंधन के साथ ही इस बार पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए (PDA) के फॉर्मूले पर चल रहे हैं। लेकिन इंडिया गठबंधन और पीडीए की राह चल रहे सपा प्रमुख को तगड़ झटका लगा है।
सालों से मुलायम सिंह यादव की सरपरस्ती में चल रही अखिल भारतीय यादव महासभा में दो फाड़ हो गया है। यूपी में यादव तबके ने यादव मंच बना कर सपा की सियासत की छाया से खुद को अलग कर लिया है। अब लखनऊ में शुक्रवार को यादव समाज के नेता अपनी अलग दिशा तय करेंगे।
अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा की स्थापना 1924 में हुई, लेकिन ज्यादातर समय इसकी कमान उत्तर प्रदेश के नेताओं के हाथों में रही। मुलायम सिंह यादव के सियासी सफर में महासभा के योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता है। पहले चौधरी हरमोहन सिंह ने और फिर 2008 से अब तक पूर्व सांसद उदय प्रताप सिंह ने इसकी कमान संभाली। सियासी तौर पर भले ही महासभा में सभी दल के लोग रहे, लेकिन किसी न किसी रूप में यह सपा को खाद-पानी देने का कार्य करती रही। पर अब हालात बदल गए हैं।
अगस्त में उदय प्रताप ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। द्वारिका में रविवार को हुई महासभा कार्यकारी समिति की बैठक में उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया। डॉ. सगुन घोष को अध्यक्ष और जौनपुर के बसपा सांसद श्याम सिंह यादव को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। जल्द ही कार्यकारिणी में बदलाव होंगे। अब चौधरी हरमोहन सिंह का परिवार भाजपा के साथ है। ऐसे में महासभा में सपा का दखल खत्म होता नजर आ रहा है।
सियासी जानकार इसे सपा के लिए बड़ा खतरा मान रहे हैं। क्योंकि महासभा के जरिए चलने वाले सामाजिक आंदोलन किसी न किसी रूप में सपा को ताकत देते थे। हालांकि नवनिर्वाचित अध्यक्ष डॉ. घोष ने क हा कि महासभा दलगत राजनीति से दूर रहती है। इसलिए नए बदलाव को सियासी तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।