अडानी को मिला आरएसएस का साथ, RSS का मुखपत्र ऑर्गनाइजर अडानी के साथ
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के बाद गौतम अडानी के ख़िलाफ़ विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया है,और संसद में चर्चा की मांग की। विपक्ष के हंगामे के बाद लोक सभा और राज्य सभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गयी। शेयर बाज़ार में अडानी के शेयर अब तक के सबसे निचले स्टार पर आ गए हैं। गौतम अडानी को रोज़ झटके लग रहे हैं। एलआईसी और स्टेट बैंक पर डूबने का ख़तरा मंडरा है ,और उधर सरकार इस पर जवाब देते हुए कतरा रही है और यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि एलआईसी को कोई ख़तरा नहीं वह मुनाफ़े में चल रही है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने जो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो माहौल बनाया है उस पर चुप रहना अब अपराध होगा। यह देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर सकता है। विपक्ष की ओर से जेपीसी से जाँच की माँग की जा रही है, लेकिन सरकार कान में तेल डाले बैठी है। वह संसद में भी बहस के लिए तैयार नहीं है।
कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस मसले पर 6 फरवरी को राष्ट्रव्यापी विरोधप्रदर्शन का ऐलान किया है। बाक़ी विपक्ष को इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए इस लूटतंत्र का पर्दफाश करने के लिए अभियान चलाना चाहिए। जनता को यह बात समझानी बहुत ज़रूरी है कि तिरंगा ओढ़कर की जाने वाली लूट कम घातक नहीं होती। चौतरफ़ा घिरे अडानी के लिए थोड़ी राहत भरी ख़बर यह है कि RSS का मुखपत्र ऑर्गनाइजर खुल कर अडानी के समर्थन में आ गया है।
आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में ‘डिकोडिंग द हिट जॉब बाइ हिंडनबर्ग अगेंस्ट अडानी ग्रुप शीर्षक से छपे लेख में बताया गया है कि कैसे यह एक विदेशी साज़िश है जिसका मक़सद देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करना है। लेख मे भारत के तमाम स्वतंत्र पत्रकारों और वेबसाइटों का उल्लेख किया गया है जो लेख के मुताबिक विदेशी फंडिंग लेकर अडानी की छवि खराब करने मे तब से जुटे हैं जब अडानी ने आस्ट्रेलिया में कोयला खदान खरीदी थी।
इन पत्रकारों पर वामपंथी विचारधारा से प्रभावित होने का आरोप लगाते हुए उन्हें डिजिटल शार्पर्शूटर बताया गया है। ऐसी तमाम वेबसाइटों को जो आज भी निर्भय होकर मोदी सरकार के कारनामों पर क़लम चलाती हैं, ‘देश विरोधी कार्टेल’ का हिस्सा बताया गया है।
अंत में लेख ये भी बताता है कि यह सब ‘2024 के चुनाव को ध्यान में रखकर’ हो रहा है। यानी अडानी पर हमला मोदी पर हमला है। हैरानी की बात ये है कि खुद को सांस्कृतिक संगठन बताने वाले आरएसएस के इस मुखपत्र को लूट की इस संस्कृति से कोई शिकायत नहीं है जो हिंडनबर्ग रिसर्च से सामने आई है।
भारत के आम निवेशकों की भावनाओं से खिलवाड़ करना, उन्हें धोखा देना, शेयरों की वास्तविक क़ीमत के साथ हेराफेरी करने जैसे आरोप उसके लिए कोई मायने नहीं रखते। न उसकी चिंता में ये बात कहीं से नज़र आती है कि अडानी पर लगे आरोपों से अंतरराष्ट्रीय जगत भारतीय अर्थव्यवस्था और इसकी नियामक संस्थाओं को लेकर गहरे संदेह से भर उठा है जिसे दूर करने के लिए एक उच्चस्तरीय जाँच की ज़रूरत है।
उल्टा लेख में यह सवाल उठाया गया है कि दूसरे तमाम उद्योगपतियों को छोड़कर अडानी को ही निशाना क्यों बनाया गया? ऑर्गनाइजर यह भूल जाता है कि ‘अमेरिकी’ हिंडनबर्ग ने जिन दस बड़ी कंपनियों की गड़बड़ियों के बारे मे रिपोर्ट जारी की है उनमें 8 अमेरिका की ही हैं। 2020 में इलेक्ट्रिक ट्रक बनाने वाली अमेरिकी कपंनी निकोला मे जारी हेराफेरी पर उसकी रिपोर्ट के बाद उसके मालिक पर अमेरिका के सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज कमशीन ने आपराधिक फ्रॉड का मुकदमा चलाया था और उसे एक हज़ार करोड़ रुपये का जुर्माना देना पड़ा था।