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वक्फ संशोधन विधेयक पर 31 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति का गठन

वक्फ संशोधन विधेयक पर 31 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति का गठन

नई दिल्ली: वक्फ संशोधन विधेयक पर लोकसभा में विपक्ष से मिली कड़ी टक्कर के बाद केंद्र सरकार ने शुक्रवार को इस विधेयक पर और अधिक विचार करने के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन कर दिया है, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा से कुल 31 सदस्य होंगे। इसमें लोकसभा से 21 सदस्य जबकि राज्यसभा से 10 सदस्य JPC में शामिल होंगे।

2014 से अब तक, लोकसभा में किसी भी विवादास्पद विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार का तरीका यही होता था कि वह अपनी बहुमत के दम पर विपक्ष के विरोध को नज़रअंदाज़ कर विधेयक पारित करवा लेती थी। लेकिन 2024 के चुनावी नतीजों के बाद स्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं। इस बार पूर्ण बहुमत न मिलने के कारण मोदी सरकार कमजोर स्थिति में आ गई है। चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और नीतीश कुमार की जेडीयू के समर्थन के बिना मोदी सरकार टिक नहीं सकती।

यह बात प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को अच्छी तरह पता है। इसी कारण उन्होंने बजट में इन दोनों पार्टियों का विशेष ख्याल रखा, लेकिन वक्फ विधेयक के मामले में शायद मोदी सरकार को यह गउम्मीद थी कि, वह इस विधेयक को भी आसानी से पारित करवा लेगी। लेकिन लोकसभा में विपक्षी सदस्य विधेयक में मौजूद धाराओं और प्रस्तावित संशोधनों पर खुलकर सवाल उठा रहे थे, इसे असंवैधानिक और एक धार्मिक अल्पसंख्यक के अधिकारों के खिलाफ बता रहे थे। वहीं मोदी सरकार की समर्थक पार्टियों टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस और एलजेपी ने विधेयक का विरोध तो नहीं किया, लेकिन इस पर और विचार करने के लिए JPC बनाने का समर्थन जरूर किया।

टीडीपी सांसद जी.एम. हरीश बालयोगी ने इस विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए विपक्षी पार्टियों की तरह जेडीयू के सांसद और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह पर हमला नहीं किया, लेकिन यह जरूर कहा कि इस पर इतना हंगामा करने की जरूरत नहीं है। पार्टी चाहती है कि इसकी धाराओं पर और विचार-विमर्श करने और सहमति बनाने के लिए इसे JPC को भेजा जाए और सरकार की ओर से एक संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाए जिसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्य शामिल हों।

यह महत्वपूर्ण मांग अगर विपक्षी खेमे से आई होती, तो मोदी सरकार, जैसा कि उसका तरीका रहा है, सदस्यों को निलंबित कर या उन्हें बाहर निकालकर इस विधेयक को पारित करवा लेती। लेकिन इस बार यह मांग उसकी अपनी सहयोगी पार्टी ने की, जिसका समर्थन चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस ने भी किया। टीडीपी और एलजेपी जहां एनडीए सरकार का हिस्सा हैं, वहीं जगनमोहन रेड्डी की पार्टी गठबंधन में शामिल नहीं होने के बावजूद पिछले 10 साल में कई बार दोनों सदनों में मोदी सरकार की मदद करती रही है।

लेकिन इस बार उसका रुख भी बदल गया है। ऐसे में मोदी सरकार यह जोखिम नहीं उठा सकती थी कि वह विधेयक पारित करवाने की कोशिश करे और इसमें उसके अपने सहयोगी ही साथ न दें। सरकार के पास अब इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वह विवादास्पद विधेयक आसानी से पारित करवा लेगी।

सरकार ने जो संयुक्त संसदीय समिति बनाई है, उसमें लोकसभा से जगदंबिका पाल, तेजस्वी सूर्या, निशिकांत दुबे, अपरजीता सारंगी, संजय जायसवाल, दिलीप साइकिया, अरुणा डीके, अभीजीत गंगोपाध्याय, गौरव गोगोई, इमरान मसूद, मोहम्मद जावेद, मुहिबुल्लाह नदवी, कल्याण बनर्जी, ए. राजा, दिलेश्वर कामित, एल. देवरायालू, अरविंद सावंत, नरेश महस्के, सुरेश महात्रे, अरुण भारती और असदुद्दीन ओवैसी शामिल होंगे। राज्यसभा से ब्रिज लाल, मेधा कुलकर्णी, गुलाम अली खटाना, राधामोहन दास अग्रवाल, नदीम हक, सैयद नासिर हुसैन, विजय साई रेड्डी, एम.एम. अब्दुल्ला, संजय सिंह और वीरेन्द्र हेगड़े इसके सदस्य होंगे।

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