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यूपी पुलिस की फायरिंग में मारे गए 22 मुसलमान 2 साल बाद भी दर्ज नहीं हुई है एफआईआर

यूपी पुलिस की फायरिंग में मारे गए 22 मुसलमान 2 साल बाद भी दर्ज नहीं हुई है एफआईआर सीएए के विरुद्ध देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के दौरान अकेले यूपी में 22 मुसलमान पुलिस फायरिंग में मारे गए।

यूपी पुलिस की फायरिंग में 22 मुसलमानों के मारे जाने की घटना को दो साल गुजर गए हैं लेकिन अभी तक पीड़ितों की कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई है और ना ही दोषियों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज हो सकी है। कानपुर में सीएए – एनसीआर- एनपीआर के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन में शामिल अपने 30 वर्षीय बेटे के पुलिस फायरिंग में मारे जाने की घटना के बारे में बताते हुए शरीफ की आवाज दर्द में डूब जाती है।

वह बताते हैं कि 2 साल बीत गए लेकिन मैं अपने बेटे को पुलिस की गोली लगने के बाद उसका सड़क पर दर्द में चिल्लाना और कराहना नहीं भूल सकता। बहुत खून बह रहा था। अधिक रक्तस्राव के कारण वह मर गया। 21 दिसंबर 2019 को कानपुर में सीएए- एनसीआर-एनपीआर के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन में शामिल रईस कथित रूप से पुलिस फायरिंग में मारे गए थे।

शरीफ बताते हैं कि उनका जीवन नर्क बन गया है। हम सब पुलिस के डर के साए में जी रहे हैं। वह हमें गालियां देते हैं। बार-बार हमें परेशान करते हैं। हमें शिकायतें वापस लेने के लिए मजबूर करते हैं और गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देते हैं। शरीफ अकेले पीड़ित नहीं हैं उनके बयान में अन्य पीड़ित परिवारों के दर्द को भी समझा जा सकता है। जिन्होंने अपनों को खोया है।

मेरठ निवासी यादुल हुसैन समेत अन्य कई मुस्लिम परिवार हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर की गई बर्बरता में अपने संबंधियों को खोया है। मुस्लिम मिरर की रिपोर्ट के अनुसार इलाहाबाद उच्च न्यायालय को दी गयी एक अनुपालन रिपोर्ट में राज्य सरकार ने स्वीकार किया है कि सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान 22 लोगों की मौत हुई है और अभी तक किसी भी पुलिसकर्मी के खिलाफ एक भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। यही कारण है कि अभी तक किसी भी मामले की जांच शुरू नहीं हो सकी है। राज्य सरकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस अवधि के दौरान 83 लोग घायल भी हुए हैं।

भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में सीएए विरोधी प्रदर्शन में पुलिस की फायरिंग में मारे गए 22 लोगों में वाराणसी, रामपुर और मुजफ्फरनगर से एक-एक, संभल और बिजनौर में दो, कानपुर में तीन, मेरठ में पांच और फिरोजाबाद में 7 लोगों की मौत हुई थी। राज्य सरकार ने कहा था कि विरोध प्रदर्शनों के चलते 833 लोगों को बंदी बनाया गया था।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण पुलिसकर्मियों की गोलियों या अत्यधिक रक्तस्राव बताया गया था लेकिन पुलिस ने ढीठता की हदें पार करते हुए प्रदर्शनकारियों की मौत का जिम्मेदार खुद प्रदर्शनकारियों को बताया था। सच्चाई जो भी हो, सवाल अपनी जगह पर जस का तस है कि इन 22 नागरिकों की मौत की जिम्मेदारी किसके सर है और उनकी हत्या किसने की है ?

पीड़ित परिवारों का कहना है कि हमारे प्रियजनों के खून से पुलिस के हाथ रंगे हुए हैं। कई घायलों की मौत पुलिस की कैद और आतंक के कारण हुई है। घायल प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने घंटों लावारिस स्थिति में छोड़ दिया।

फिरोजाबाद के मुकीम की सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गई थी। उनके पिता ने बताया कि पुलिस फायरिंग में घायल होने वाले अपने बेटे को देखने के लिए मैं मेरठ अस्पताल पहुंचा। मैंने देखा कि वह अस्पताल में लावारिस हालत में पड़ा हुआ था। कुछ घंटों बाद उसे आगरा ले जाया गया। आगरा से उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर किया गया। इलाज में हुई देरी के कारण उसकी मौत हो गई।

फिरोजाबाद के ही अबरार का भी यही हाल हुआ। वह घंटों सड़क पर पड़े रहे। उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाया गया लेकिन समय पर इलाज नहीं मिला। अबरार की मां कहती है कि हम थक हार कर उन्हें दिल्ली के अपोलो अस्पताल ले गए जहां उनकी मौत हो गई।
अधिकांश पीड़ित मजदूर वर्ग के थे इसलिए पुलिस ने जमकर उनके साथ दुर्व्यवहार किया।

कानपुर में एक स्थानीय वकील ने कहा कि पुलिस पीड़ितों के साथ बुरा व्यवहार करती है तथा अपने खिलाफ दर्ज किए गए मामलों को रद्द करने के लिए उन पर बार-बार दबाव बनाते हुए हलफनामे पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करती है। पीड़ित परिवारों की कोई सुनवाई नहीं, ना ही उनके पास जाने के लिए कोई जगह है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके लिए सब दरवाजे बंद हो गए हैं।

फिरोजाबाद जिले में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गई लेकिन यहां भी किसी पुलिस वाले के खिलाफ एक भी एफआईआर नहीं की गई है। पुलिस ने आईपीसीआर की धारा 304 के तहत शुरू में कुछ मामले दर्ज किए थे बाद में अदालत के हस्तक्षेप के बाद कुछ मामले 302 के तहत दर्ज किए गए हैं।

एआईसीसी के सुबूर अली कहते हैं मुसलमान मारे गए, मुसलमान हत्यारे थे, मुसलमान अपराधी थे, मुसलमानों को पुलिस परेशान कर रही है ,उनकी संपत्ति कब्जाई जा रही है। मुझे लगता है कि भारत में सत्तारूढ़ व्यवस्था के तहत न्याय एक भ्रम बनकर रह गया है।

वहीँ रिहाई मंच के राजीव यादव का कहना है कि एक गुंडे ने संवैधानिक पद पर कब्जा कर लिया था जो बदला लेने की बात करता है। सच्चाई यह है कि योगी ने उत्तर प्रदेश पुलिस को मुसलमानों को मारने के लिए उकसाया था। मुसलमानों की हत्या में शामिल सभी पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए और सभी पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

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