पति की सहमति के बिना भी मुस्लिम महिलाओं को तलाक का अधिकार: केरल कोर्ट
केरल उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि मुस्लिम महिलाओं के तलाक लेने के अधिकार को इस्लामी कानून में मान्यता दी गई है। तलाक की उसकी इच्छा जरूरी नहीं कि उसके पति की इच्छा से मेल खाती हो। दूसरे शब्दों में, मुस्लिम महिलाएं तलाक की मांग कर सकती हैं, भले ही पति तलाक के लिए सहमत न हो और यह अधिकार उन्हें इस्लामी कानून में दिया गया है।
अदालत ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं पति की सहमति के बिना ‘खुला’ का उपयोग कर सकती हैं। यहाँ पर यह स्पष्ट होना चाहिए कि जब एक मुस्लिम महिला तलाक की प्रक्रिया शुरू करती है, तो इसे ‘ख़ोला ‘ कहा जाता है और इसके लिए पति की सहमति ज़रूरी है। केरल उच्च न्यायालय ने संशोधन को बरकरार रखते हुए रिव्यू पिटीशन को खारिज करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि याचिका पुरुष वर्चस्ववादी मानसिकता द्वारा दी गई है, जो मुस्लिम महिलाओं को दिए गए अधिकारों को पचा नहीं पा रहे हैं।
जिस अपील द्वारा दोबारा पुनरीक्षण की मांग की गयी है वह, मुस्लिम विवाह अधिनियम,1939 एक्ट के तहत एक मुस्लिम पत्नी को दी गई तलाक को चुनौती देते हुए दायर की गई थी। पुनरीक्षण में, यह तर्क दिया गया कि यदि एक मुस्लिम पत्नी अपने पति के साथ अपनी शादी समाप्त करना चाहती है, तो उसे अपने पति से तलाक लेना होगा और उसके इनकार पर उसे काजी या अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा।
याचिकाकर्ता ने यह रुख अपनाया कि एक मुस्लिम महिला को अपनी मर्जी से तलाक लेने का अधिकार है, लेकिन यह भी तर्क दिया कि उसे ‘ख़ोला’ का अधिकार नहीं है। दुनिया में कहीं भी , किसी भी, मुस्लिम समुदाय में, एक मुस्लिम पत्नी को एक तरफा विवाह को समाप्त करने की अनुमति नहीं है।