उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों और गावों की चिकित्सा प्रणाली “राम भरोसे”, उत्तर प्रदेश में Covid-19 स्थिति को देखते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों और गावों में चिकित्सा प्रणाली “राम भरोसे” चल रही हैं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पीठ ने संतोष कुमार (64) की मौत को ध्यान में रखते हुए ये टिप्पणी की है, जिसकी मेरठ के एक अस्पताल में एक आइसोलेशन वार्ड में ईलाज दौरान मृत्यु हो गई थी।
उच्च न्यायालय का कहना है कि उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में तेजी से बढ़ रहे संक्रमण के बीच कोविड मरीजों के इलाज में लापरवाही बरती जा रही है जिसमे तत्काल सुधार की जरूरत है.
बता दें कि उच्च न्यायालय ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के मुख्य सचिव,को संतोष कुमार की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ ‘कड़ी कार्रवाई’ करने का निर्देश दिया है।
भारतीय न्यूज़ एजेंसी के एएनआई अनुसार उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को चार महीने के भीतर राज्य के अस्पतालों में चिकित्सा के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कदम उठाने और पांच मेडिकल कॉलेजों (प्रयागराज, आगरा, कानपुर, गोरखपुर और मेरठ) को संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के रूप में विकसित करने के निर्देश दिए हैं ।
उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को ये भी निर्देश दिए हैं कि प्रत्येक नर्सिंग होम/अस्पताल, (जिसमें 20 से अधिक बेड हों) में कम से कम 40 प्रतिशत बेड इंटेंसिव केयर यूनिट के रूप में होने चाहिए।
उच्च न्यायालय ने कहा कि 30 से अधिक बेड वाले हर नर्सिंग होम और अस्पताल में अनिवार्य रूप से ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र होना चाहिए। “राज्य के सभी 20-बेड वाले नर्सिंग होम में आईसीयू में कम से कम 40 प्रतिशत बेड होने चाहिए और 25 प्रतिशत में वेंटिलेटर होना चाहिए। 30 बिस्तरों वाले नर्सिंग होम में ऑक्सीजन प्लांट होना चाहिए।”
उच्च न्यायालय ने ये भी कहा है कि उत्तर प्रदेश के हर दूसरे और तीसरे दर्जे के शहर में कम से कम 20 एम्बुलेंस उपलब्ध कराई जानी चाहिए और हर गांव में कम से कम दो एम्बुलेंस उपलब्ध कराई जानी चाहिए।