रूस और यूक्रेन में क्यों भड़का महायुद्ध, इस रिपोर्ट में पढ़िए
कभी एक ही संघ का हिस्सा रहे दो जिगरी दोस्तों में महायुद्ध चल रहा है।
रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई है। किसके कितने फौजी मरे, कितना नुकसान हुआ इसको लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं लेकिन एक बात निश्चित है कि यूक्रेन के लाखों लोग देश छोड़कर सीमावर्ती देशों की ओर निकल गए हैं।
यूरोप एक बार फिर महायुद्ध के कगार पर खड़ा है। पूरी दुनिया की निगाहें रूस और यूक्रेन पर बनी हुई हैं लेकिन क्या आप जानते हैं सोवियत संघ के जमाने में और उसके बाद भी यह देश एक दूसरे के निकट सहयोगी रहे हैं। फिर क्या कारण है कि यह दोनों देश आज एक दूसरे से युद्ध कर रहे हैं?
पश्चिम में यूरोप और पूर्व में रूस से जुड़ने वाला यूक्रेन 1991 तक सोवियत संघ का हिस्सा था। रूस और यूक्रेन के बीच विवाद के कई कारण है लेकिन इसमें सबसे अहम मुद्दा नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (नाटो) को माना जा रहा है। नाटो की वजह से ही रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की आग भड़की है।
अमेरिका ने तत्कालीन सोवियत संघ से निपटने के लिए 1949 में नाटो का गठन किया था। इस संगठन के गठन का उद्देश्य रूस को काउंटर करना था। ब्रिटेन और अमेरिका समेत नाटो में 30 सदस्य देश शामिल हैं। नाटो के सदस्य देशों पर अगर कोई हमला करता है तो उसे पूरे नाटो देशों पर हमला माना जाएगा और सभी सदस्य देश एकजुट होकर हमलावर का मुकाबला करेंगे।
यूक्रेन नाटो का हिस्सा बनना चाहता था और रूस को यह बात स्वीकार नहीं थी जिसकी वजह से विवाद ने जन्म लिया। रूस का कहना था कि अगर यूक्रेन नाटो का हिस्सा बनता है तो रूस-यूक्रेन सीमा पर नाटो के सैनिक डेरा डाल देंगे अगर नाटो जैसे संगठन रूस की सीमा पर डेरा डालते हैं तो उसकी सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर समस्याएं खड़ी हो जाएंगी।
राष्ट्रपति पुतिन लगातार अमेरिका और पश्चिमी देशों से कहते रहे हैं कि वह नाटो का विस्तार ना करें। इसको लेकर पुतिन पश्चिमी देशों पर दबाव भी डालते रहे हैं। रूस के पास 1200000 सैनिक हैं जबकि नाटो में सैनिकों की संख्या कम से कम 30 लाख है, इसलिए भी रूस नाटो कीअपनी सीमा पर उपस्थिति को खतरा मानता है।
रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनने से रोकना चाहता है। रूस चाहता है कि उसे लिखित में आश्वासन दिया जाए कि यूक्रेन को कभी भी नाटो में शामिल नहीं किया जाएगा। रूस की मांग है कि संघ से अलग होने वाले देशों को नाटो में शामिल ना किया जाए और मास्को यह गारंटी लिखित में चाहता है।
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव का एक कारण 2014 में उत्पन्न हुआ क्रीमिया विवाद भी है। रूस ने 2014 में क्रीमिया पर अधिकार कर लिया था। सामरिक रूप से रूस के लिए बेहद महत्वपूर्ण क्रीमिया बंदरगाह रूस को 12 मासी समुद्र से कनेक्टिविटी देता है। क्रीमिया की अधिकतर जनता रशियन बोलती है। वह यूक्रेन के मुक़ाबले रूस से अधिक लगाव रखते हैं। यूक्रेन को डर है कि रशियन बोलने वाले एवं रूस से लगाव रखने वाले यूक्रेन के अन्य भाग पर भी रूस कब्जा कर सकता है।
रूस से यूरोप जाने वाली गैस पाइपलाइन को लेकर भी दोनों देशों के बीच विवाद पाया जाता है। रूस से यूरोप जाने वाली गैस पाइपलाइन यूक्रेन से होकर गुजरती है और रूस इसके लिए हर साल यूक्रेन को 33 बिलियन डॉलर का भुगतान करता है जो यूक्रेन के कुल बजट का 4% है। यह भुगतान रूस को बहुत महंगा पड़ता है और इससे बचने के लिए उसने 10 बिलियन डॉलर की लागत से नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन शुरू की है। रूस ने समुद्र के रास्ते पाइप लाइन डालकर यूरोप गैस पहुंचाई है। ऐसे में कहा जा सकता है कि रूस यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर कब्जा करता है तो वह यूरोप तक आसानी से गैस पाइपलाइन भेज सकता है।
यूक्रेन और रूस के बीच नवंबर 2013 में उस वक्त भी तनाव चरम पर था जब रूस समर्थक यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यांकोविच के खिलाफ अमेरिकी और यूरोप समर्थित राजनीतिक दलों की अगुवाई में विरोध प्रदर्शन हुए थे। अमेरिका-ब्रिटेन और यूरोप समर्थित प्रदर्शनकारियों के विरोध के कारण फरवरी 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति को देश से भागना पड़ा था जिससे नाराज होकर रूस ने दक्षिणी यूक्रेन में कार्यवाही करते हुए क्रीमिया को अपने अधीन ले लिया और अलगाववादियों के समर्थन का ऐलान किया। पूर्वी यूक्रेन के बड़े हिस्से पर भी अलगाववादियों का कब्जा है। 2014 के बाद से ही अलगाववादियों और यूक्रेन सेना के बीच डोनबास में संघर्ष चल रहा है।
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भी दोनों देशों में क्रीमिया को लेकर टकराव की स्थिति बनी थी। हाल ही में अमेरिका और नाटो के समर्थन की आशा लिए यूक्रेन और रूस के बीच महीनों तनाव चला था। अमेरिका और उसके घटक देशों की बयानबाजी एवं पाबंदियों की परवाह किए बिना आखिरकार रूस ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई की घोषणा कर दी।
तमाम अनुमानों और आशा के विपरीत अगर अमेरिका और नाटो रूस के खिलाफ मैदान में उतरने का साहस दिखते हैं तो इस संकट को महायुद्ध में बदलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।