जिस तरह से शहीद जवानों के नाम पर पोस्टर लगा कर वोट मांगे जाते हैं, उसी तरह ये क्यों नहीं दिखाया जा रहा है कि हमारे तमाम पूर्व सैनिक दो महीने से दिल्ली की दहलीज पर बैठे हैं और उन्हें “देशविरोधी” बोला जा रहा है। सरकारी सुरक्षा प्राप्त एक विक्षिप्त महिला उन्हें साफ शब्दों में आतंकवादी बोल रही है।
वही सैनिक शहीद हो जाए तो देश का गर्व और वही जिंदा इंसान के रूप में अपनी आवाज़ बुलंद करे तो खालिस्तानी आतंकवादी?
जिन्होंने अपनी जवानी सीमा पर देश की सुरक्षा में गुजार दी, वैसे तमाम फौजी बुजुर्ग दो महीने से अपने साथी किसानों के साथ सड़क पर बैठे हैं। धरना दे रहे किसानों में ऐसे बाप हैं जिनके बेटे अब भी फौज में हैं। फौजियों की मांएं हैं, उनकी पत्नियां हैं।
एक दो सैनिक प्रदर्शन स्थल पर सेना की वर्दी में भी आ गए थे। एक के हाथ में तख्ती थी, जिसपर लिखा था, “अगर मेरा बाप आतंकवादी है तो मैं भी आतंकवादी हूं।”
आप समझ रहे हैं कि ये कितना खतरनाक खेल है?
जब फायदा मिले तो उसके नाम पर राजनीति करो, उसे देश का गर्व कहो, जब वह अपनी आवाज उठाए तो उसे देशविरोधी बोलो।
धरने पर बैठे उनके परिवारों के साथ क्या सुलूक हो रहा है? बाड़ लगाकर उनके लिए पानी और खाना तक की सप्लाई बाधित कर दी गई है?
इसका साफ मतलब है कि जिस सैन्य राष्ट्रवाद के नाम पर आपको गर्व करने को कहा जाता है, वह बिल्कुल खोखला और जनविरोधी है। वह न किसानों के साथ है, न जवानों के साथ।
एक बार कल्पना करके देखिए कि अगर देश के किसान और जवान देशविरोधी हो जाएंगे, तो देशभक्त कौन बचेगा?
50 लोगों के कॉरपोरेट को पालने वाले झुट्ठे नेता जो अपनी कुर्सी बचाने के लिए दंगा कराने से भी परहेज नहीं करते? आपका दिमाग ठीक तो है?
(यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)
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