इज़रायल का ग़ाज़ा पर हमला, प्रतिशोध या निर्दोषों की हत्या ?
हमास-इज़रायल युद्ध समय के साथ और भी खतरनाक होता जा रहा है और इसके साथ ही एक बड़ा मानवीय संकट भी बनता जा रहा है। दुनिया के कई देश संयुक्त राष्ट्र के साथ युद्धविराम करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि नुकसान सिर्फ, फिलिस्तीन और हमास को ही नहीं हो रहा है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी किसी न किसी तरह से नुकसान हो रहा है, जिसके बारे में कोई बात नहीं कर रहा है। दरअसल, जब युद्ध शुरू हुआ तो किसी ने इसे रोकने की कोशिश नहीं की, जिससे यह और भीषण हो गया। अब स्थिति यह है कि न तो इज़रायल युद्ध रोकने को तैयार है और न ही हमास।
दोनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, क्या होगा, कोई नहीं जानता। बदले की आग दोनों तरफ इतनी भड़की हुई है कि इसे जल्दी बुझाना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है, लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि कम से कम पश्चिमी देशों को युद्ध खत्म करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसीलिए पश्चिमी देश युद्ध-विराम को लेकर न तो कोई अपील कर रहे हैं और न ही बातचीत या बैठक कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठन द्वारा संयुक्त राष्ट्र में जो भी प्रस्ताव पेश किया गया, उसे मंजूरी नहीं मिल सकी। एक तरह से युद्ध में उनकी बेबसी और लाचारी एक बार फिर दुनिया के सामने आ गई। फिलहाल दुनिया के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि युद्ध को कैसे रोका जाए और इसकी शुरुआत कौन करेगा।
दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं है जहां युद्ध के ख़िलाफ़ सार्वजनिक विरोध, प्रदर्शन और मार्च नहीं होते हों। इज़रायल और फिलिस्तीन में भी जबरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन विरोध के नारे रेगिस्तान में गूंजने वाले साबित हो रहे हैं। वे सरकारी दीवारों से टकराकर वापस आ रहे हैं। वहां की सरकारों पर उनका कोई असर नहीं दिख रहा है। सीजफायर को लेकर उन्होंने सार्थक चुप्पी साध रखी है। इज़रायल और हमास लड़ रहे हैं और दुनिया भर की सरकारें सिर्फ तमाशा देख रही हैं। शायद वे किसी बड़ी तबाही का इंतजार कर रहे हैं, वर्ना यूरोपीय देशों द्वारा युद्ध-विराम के लिए एक आवाज ज़रूर उठाई जाती। इसे कहने की जरूरत नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है कि यूरोपीय देश युद्ध रोकने की जगह, इसमें मरने वाले मासूम, बेगुनाह, औरतों, मर्दों, की चीख़ पुकार का आनंद लेना चाहते हैं।
गलती किसकी है और बचाव का अधिकार किसे है, या हमला करना उचित है या नहीं , इन सब पर शुरुआत में चर्चा हो सकती थी और हुई भी, लेकिन अब बड़ा सवाल यह है कि गलती और बचाव के नाम पर अब और कितने हजार बेगुनाहों का खून बहाया जाएगा? वर्तमान में ख़ुद को सभ्य कहने और समझने वालों के लिए इस तरह खुल्लमखुल्ला नरसंहार करना कितना जायज़ है? और साथ ही साथ इस नरसंहार पर ख़ामोश तमाशाई बने लोग इंसानियत की दुहाई कैसे दे सकते हैं? क्योंकि अब तो यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि यह युद्ध बदले की भावना से नहीं है बल्कि बेगुनाहों मासूमों के क़त्ले आम का बहाना है। इस युद्ध में सिर्फ उन मासूम बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को ही मारा जा रहा है, जिन्होंने कोई जुर्म नहीं किया है।
आखिर दुनिया 3 हजार से ज्यादा बच्चों और एक हजार से ज्यादा महिलाओं की हत्या को क्या जायज ठहरा सकती है? अगर यह मान भी लिया जाए कि इज़रायल हमास से बदला ले रहा है, तो भी इजराइल ने हमास के कितने लोगों को मार डाला? वह 100 लोगों की सूची भी पेश नहीं कर सकता। इसका मतलब यह है कि वह आम लोगों, मासूम बच्चों और महिलाओं को मारकर उनके ख़ून से अपनी प्यास बुझा रहा है, और पूरी दुनिया केवल निंदा कर रही है, मानो दुनिया को इस बात का पता ही नहीं है कि इस युद्ध में कितने बेगुनाह मर गए,जबकि मृतकों, घायलों और यहां तक कि शरणार्थियों के आंकड़े लगभग रोजाना आ रहे हैं।
भूक, प्यास, और चिकित्सा से तड़पने वालों की रिपोर्ट भी हर रोज़ सामने आ रही है। हर कोई जानता है कि युद्ध के 3 सप्ताह बाद भी केवल आम लोग ही मारे जा रहे हैं या घायल हो रहे हैं। दुनिया जानती है कि अगर युद्ध जारी रहा तो इसका दायरा बढ़ सकता है, फिर भी उदासीनता का प्रदर्शन समझ से परे है। जिस तरह से इज़रायल युद्ध को लेकर अपने खतरनाक इरादे दिखा रहा है, बल्कि इसकी घोषणा कर रहा है। ऐसे में शांति स्थापित करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। पूरे क्षेत्र की सुरक्षा को खतरे में डालने से बचने के लिए युद्ध के विनाशकारी प्रभावों और खतरों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। बार-बार तनाव, बदले और युद्ध से बचने के लिए फिलिस्तीन की समस्या को हमेशा के लिए हल किया जाना चाहिए। अन्यथा, जब तक समस्या हल नहीं हो जाती भविष्य में युद्ध की आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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