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ईरान के इस्लामी इन्क़िलाब की 42वीं सालगिरह

हमारे दौर में जो चीज़ें इस्लामी इंक़ेलाब के नाम से ज़ाहिर हुईं हैं वह दोस्त और दुश्मन हर एक की सोंच से कहीं ऊपर थी, कई देशों में इस्लामी आंदोलन और तहरीकों की शिकस्त की वजह से मुसलमान यह सोंचने लगे थे कि जो संसाधन और ज़रिए इस्लाम दुश्मन ताक़तों के हाथ में हैं उनको देखते हुए इस्लामी हुकूमत का गठन और निर्माण मुमकिन नहीं है, दूसरी तरफ़ इस्लाम विरोधी भी अपनी साज़िशों के तहत संतुष्ट हो चुके थे कि ख़ुद मुसलमानों और इस्लामी क़ौमों के बीच उन्होंने मज़हब, क़ौम, रंग, नस्ल के नाम पर जो भेदभाव पैदा कर दिए हैं उनकी बुनियाद पर इन देशों में इस्लामी हुकूमत नाम की चीज़ का वुजूद ना मुमकिन है, ख़ुद ईरान के अंदर पिछले 50 सालों में पहलवी हुकूमत के हाथों इस्लाम की जड़ें उखाड़ फेंकने के कोशिशें की गईं, पहलवी बादशाहत ने न केवल अपने दरबार में बल्कि देश की सभी संवेदनशीन जगहों पर नैतिकता को रौंदने का बाज़ार गर्म कर रखा था,
ईरान के शाह ने 2500 साल की बादशाहत का जश्न बरपा करके जो हक़ीक़त में मजूसियों का मज़हर था और हिजरी तारीख़ का नाम बादशाही तारीख़ में बदल कर साम्राज्य के प्रभाव के पूरी तरह से माहौल बना दिया था, ऐसे देश में इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के बारे में बिल्कुल भी सोचा नहीं जा सकता था, और यह कामयाबी एक ग़ैर मामूली कामयाबी थी।

बिना किसी शक के जिस हस्ती ने इस इंक़ेलाब की रहबरी और नेतृत्व ने देशी और विदेशी सारे रुकावटों और संसाधनों की कमियों के बावजूद पूरे देश और देश की जनता को अपने इर्द गिर्द जमा करके न केवल इस इस्लामी इंक़ेलाब को ईरान में कामयाब बनाया बल्कि सारे इस्लाम जगत में आज़ादी और हुर्रियत का बीज बो दिया और मुसलमानों में एक नई उम्मीद और बेदारी की इंक़ेलाबी कैफ़ियत पैदा कर दी, बेशक यह शख़्सियत इस्लामी दुनिया की एक ग़ैर मामूली शख़्सियत है, ज़ाहिर है इस अज़ीम हस्ती ने मुसलमानों की बेदारी, उनके बीच इत्तेहाद और एकता और उनकी बीमारियों को पहचानने और उनके इलाज करने के सिलसिले में बहुत तकलीफ़ें और कठिनाईयां उठाई हैं।

आयतुल्लाह ख़ुमैनी के नेतृत्व में 1979 में इस्लामी जगत का पहला अवामी इंक़ेलाब आया, जिसके नतीजे में मिडिल ईस्ट का सबसे ताक़तवर शाही हुकूमत का सिस्टम चकनाचूर हो गया, किसी बड़े विचारक ने कितनी अच्छी बात कही है कि जब मिस्र में अल-अज़हर का इल्मी प्रभाव, सूफ़ियों की रूहानियत और लोकप्रियता और एख़वानुल-मुसलेमीन का अनुशासन सब आपस में मिल जाएं तो इंक़ेलाब दिखाई देगा, ईरान के सिलसिले में यह तीनों चीज़ें एक ही शख़्सियत में जमा थीं,
आयतुल्लाह ख़ुमैनी के चाहने वालों ने और विशेष कर स्कॉलर और उनके शागिर्दों ने पूरे अनुशासन और सतर्कता से इंक़ेलाब के पैग़ाम को ईरान के शहरों, गावों, गलियों और मोहल्लों में इस तरह फैलाया कि शाही साम्राज्य की चूलें हिला कर रख दीं।

आयतुल्लाह ख़ुमैनी के नेतृत्व में ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी से दुनिया के दूसरे इलाक़ों में साम्राज्यवादी सिस्टम का भ्रष्टाचार और फ़ितना और फ़साद फैलाने और आपसी फूट डलवाने की साज़िशें बेनक़ाब हुईं,

आयतुल्लाह ख़ुमैनी गहरी सोंच रखने वाले लीडर थे जिन्होंने इंक़ेलाब के पहले दिन से ही जनता के दिल जीत लिए, उन्होंने ईरान में इस्लामी सिस्टम की बुनियाद रख कर दुनिया में हुकूमत के नए तरीक़े को पहचनवाया।

आज इंक़ेलाब की कामयाबी के 42 साल गुज़रने के बावजूद ईरान के इस्लामी लोकतंत्र के सिस्टम में लोकतंत्र रौशन सितारे की तरह चमक रहा है, आयतुल्लाह ख़ुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी इंक़ेलाब ने दुनिया को अच्छी हुकूमत और सिद्धांत प्रणाली को पहचनवाया और इसी वजह से इस्लामी इंक़ेलाब से दुश्मनी की शुरूआत हुई।

इंक़ेलाब के बाद ईरान में आयतुल्लाह ख़ुमैनी और उनके जैसी फ़िक्र और उनके जैसे विचार रखने वालों की इस्लामी विचारधारा पर आधारित हुकूमत का सिस्टम जिस तरह कामयाबी से चल रहा है वह भरोसेबंद और पैरवी के क़ाबिल है, इस्लामी जगत में राजनीतिक सुधार और सकारात्मक बदलाव के लिए ईरान के इंक़ेलाबी राजनीतिक सिस्टम की कामयाबी बुनियादी अहमियत रखती है, और इसका इस्लामी जगत के भविष्य पर राजनीतिक हवाले से गहरा प्रभाव पड़ा,

ईरान का इस्लामी इंक़ेलाब अवामी इंक़ेलाब था जिसके बाद एक नए संविधान और नए सिस्टम के गठन की शुरूआत हुई, यह सिस्टम न केवल अवामी है बल्कि एक कामयाब अवामी सिस्टम है जो पिछले 42 साल से पूरी मज़बूती के साथ क़ायम है, इंक़ेलाब के बाद का गठन किया गया, 1 अप्रैल 1979 के दिन यह संविधान जनता के सामने मंज़ूरी के लिए पेश किया गया, सारी ईरानी जनता ने एक आवाज़ में उस संविधान और क़ानून को मंज़ूरी दे दी, जहां जहां भी लोकतंत्र है वहां क़ानून और निज़ाम को जनता या जनता के प्रतिनिधि यानी चुने हुए नेता मंज़ूर करते हैं और ईरान में भी जनता मे इस्लामी लोकतंत्र को चुना, ईरान के क़ानून और संविधान की रौशनी में सुप्रीम लीडर का पद सबसे ऊंचा है।

ईरान के मौजूदा सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली ख़ामेनई अवाम द्वारा चुनी गई ख़ुबरेगान कमेटी द्वारा रहबरी के लिए चुने जाने से पहले दो बार ईरान के राष्ट्रपति पद पर जनता द्वारा भारी मतों से चुन कर आए थे, इंक़ेलाब की कामयाबी से ले कर आज तक हमेशा ख़ुबरेगान कमेटी का चयन क़ानून पर अमल करते हुए उसके सही समय पर होता रहा है, चाहे जंग का माहौल हो या अमन और शांति का वहां की जनता ने समय पर पूरे क़ानून पर अमल करते हुए चुनाव में हिस्सा लिया है और पूरी दुनिया के लिए लोकतांत्रिक हुकूमत का सही मतलब समझाया है।

आज ईरान की तरक़्क़ी और मज़बूती और क़ौमी एकता ने इस्लामी लोकतंत्र को एक मज़बूत ताक़त में बदल कर के रख दिया है, और यह सारा क्रेडिट ईरान के इंक़ेलाब की बुनियाद रखने वाले लीडर आयतुल्लाह ख़ुमैनी को जाता है कि ईरान आज दुनिया की सुपर पावर ताक़तों अमेरिका और इस्राईल की आंखों में आंखें डाल कर बात करता है, अमेरिका ईरान को धमकियां ज़रूर देता है मगर उसमें अब इतनी हिम्मत नहीं कि वह ईरान पर हमले की सोंच सके, ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब ने देश और क़ौम की तक़दीर ही बदल कर रख दी है, हर वर्ग को उसके हूक़ूक़ हासिल हैं, कुछ ग्रुप्स की तरफ़ से धरने और हंगामे के बावजूद हुकूमत अपने टॉरगेट को हासिल कर रही है।

मौलाई जी की क़लम से
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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