कन्हैया लाल की हत्या गैर-इस्लामिक नहीं बल्कि ग़ैर-इंसानी कृत्य है
यहूदी मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा का परिणाम है कि मुसलमानों जैसे नामों की वजह से कुछ गुमराह तत्व कन्हैया लाल हत्याकांड पर इस्लाम को कोस रहे हैं जबकि कोर्ट ने नूपुर शर्मा के खिलाफ अब तक कार्रवाई नहीं करने पर पुलिस को भी फटकार लगाई है। बल्कि कोर्ट ने यह भी कहा कि नूपुर शर्मा पूरे देश के लिए खतरा हैं। उनके इस बयान से देशभर के कुछ अराजक तत्व भड़क गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बावजूद कुछ तथाकथित मुसलमान जिस तरह से इस मामले को मदरसों की ओर मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं वह बेहद शर्मनाक और निंदनीय है। इन बयानों के परिणाम स्वरूप, उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या के खिलाफ प्रदर्शनकारियों ने मदरसों को बंद करने की मांग की है जबकि सत्य यह है कि कन्हैया लाल की हत्या करने वाले मुस्लिम युवक न तो किसी मदरसे के स्नातक हैं और न ही उन्हें इस्लाम की सही शिक्षाओं का ज्ञान है।
इस्लाम एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या को पूरी मानवता की हत्या के बराबर समझता है इसलिए भारतीय मुसलमानों ने सर्वसम्मति से इस बर्बर कृत्य की निंदा की है और मांग की है कि अपराधियों को दंडित किया जाए और उन्हें कठोर सज़ा दी जाए। इस्लाम दुनिया का इकलौता ऐसा धर्म है जिसकी बुनियाद ठोस दलीलों पर है। बुद्धि, चेतना, चिंतन और धैर्य उसके हथियार हैं। जो लोग हिंसा या हत्या के माध्यम से इस्लाम का झंडा फहराना चाहते हैं, वे वास्तव में उन शक्तियों के औज़ार हैं जो इस्लाम को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा हैं।
भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने की शर्मनाक हरकत, मुसलमानों की भावनाओं को भड़काने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। देश भर के मुसलमानों ने इसके खिलाफ अपना विरोध भी दर्ज कराया। यह बात अलग है कि प्रदर्शनकारियों के साथ पुलिस और सरकारी मिशनरी द्वारा बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया गया।
इसी विरोध के दौरान झारखंड में पुलिस फायरिंग में दो मुस्लिम युवकों की मौत हो गई। सैकड़ों युवकों को गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस थानों में उन पर घोर अत्याचार किया गया। मुसलमानों ने कहीं भी कानून अपने हाथ में नहीं लिया और वे लोकतांत्रिक तरीकों का पालन करते रहे। लेकिन उदयपुर में कन्हैया लाल की बेरहमी से हत्या करने वाले युवकों ने मुस्लिम समाज का बहुत बड़ा नुकसान किया, क्योंकि यह कृत्य न तो इस्लाम की शिक्षाओं का हिस्सा है और न ही पैगंबर की तालीम बल्कि पैग़म्बर साहब ने अपने साथ साथ दुर्व्यवहार करने वालों और और गालियां देने वालों के सामने अच्छे शिष्टाचार दिखाकर उनका दिल जीत लिय। यह मानव इतिहास में परोपकार और उच्च चरित्र का सबसे अच्छा उदाहरण है।
28 जून की रात जब दर्जी कन्हैया लाल की निर्मम हत्या की खबर सार्वजनिक हुई तो पूरे देश में सनसनी फैल गई। उदय पुर में स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई कि प्रशासन को पूरे शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा। गौरतलब है कि कन्हैया लाल ने कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर नूपुर शर्मा के बयान का समर्थन किया था। इसके बाद से उन्हें लगातार धमकियां मिल रही थीं।
एक स्थानीय निवासी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी के बाद कन्हैया लाल को भी 10 जून को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन अगले दिन जमानत पर रिहा कर दिया गया। जमानत पर रिहा होने के बाद, वह लगातार पुलिस को इस बारे बारे में सचेत कर रहा था कि उसकी जान को ख़तरा है, लेकिन उसकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाया गया। आखिरकार मंगलवार की शाम को मोहम्मद रियाज और ग़ौस मोहम्मद नाम के दो युवक कथित तौर पर कपड़े सिलाने के लिए उसकी दुकान में घुसे और नाप लेते हुए उसके शरीर से उसकी गर्दन काटकर उसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया को सौंप दिया।
इस घटना के बाद राजस्थान की गहलोत सरकार ने जिस तेजी से कार्रवाई की है वह निश्चित रूप से काबिले तारीफ है, क्योंकि वीडियो के सार्वजनिक होने के बाद जिस तरह से उकसावे की शुरुआत हुई उसमें कोई अप्रिय घटना हो सकती थी। छह घंटे के भीतर न सिर्फ आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, बल्कि विशेष अदालत ने उन्हें जल्द से जल्द न्याय के कटघरे में लाने की भी घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने कन्हैया लाल के शोक में डूबे हुए परिवार को 51 लाख रुपये का चेक भी प्रदान किया। वहीं, परिवार के दो सदस्यों को सरकारी नौकरी देने की भी घोषणा की गई है।
जिन शब्दों में मुस्लिम नेताओं, मौलवियों, राष्ट्रीय संगठनों और उर्दू मीडिया ने कन्हैया लाल की निर्मम हत्या की निंदा की है, उसका कोई उदाहरण नहीं है। इस बर्बर कृत्य के दोषियों के पक्ष में एक भी आवाज नहीं उठाई गई । इसके विपरीत दिसंबर 2017 में उसी उदयपुर बीजेपी शासन में जब शंभू नाथ रेगर ने एक बंगाली मजदूर मोहम्मद अफ़ज़ारूल को ‘लव जेहाद’ का आरोप लगाते हुए कुल्हाड़ी से बेरहमी से मार कर ज़िंदा जलाया तो सैकड़ों लोग आरोपी के समर्थन में सड़कों पर उतर आए थे और अदालत में उसका बचाव भी किया था। पांच सौ लोगों ने आरोपी की पत्नी को300,000 रुपये का दान भी दिया था। मामला अभी भी अदालत में लंबित है और उसकी सज़ा खत्म नहीं हुई है। एक बार ज़मानत पर रिहा भी हो चुका है।
पिछले आठ वर्षों में, दर्जनों मुसलमानों को गौरक्षा के झूठे आरोपों में मार डाला गया है, लेकिन अभी तक किसी को दोषी नहीं ठहराया गया है। लेकिन कन्हैया लाल के हत्यारों को अगले महीने फांसी दिए जाने की संभावना है जो कि सही फ़ैसला साबित होगा। लेकिन प्रश्न बाक़ी रहेगा कि शम्भू नाथ रेगर को फांसी कब होगी? उसकी फांसी की मांग के लिए क्या विहिप और बजरंग दाल के कार्यकर्ता सड़क पर आएंगे?
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