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अमेरिकी राजनीति का ऊँट किस करवट बैठेगा? वाशिंगटन को है तेहरान के हमलों का डर

सऊदी समर्थक समाचार पत्र अल अरब ने ईरान के खिलाफ अमेरिका के संभावित प्रभावी क़दमों से निराश होते हुए कई महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस्राईल , सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को ट्रम्प के बाद सत्ता संभालने वाले बाइडन के कार्यकाल को लेकर यह चिंता है कि ईरान के साथ वार्ता के दौरान बाइडन सरकार के हित कहीं इस बात का कारण न बनें कि वह पड़ोसियों के लिए ईरान के खतरे को नज़रअंदाज़ कर दे।
हालाँकि पिछले चार सालों के दौरान, ईरान और अमेरिका के बीच कभी शांति नहीं रही ऐसे में जो बाइडन की समझौते में वापसी से भी कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है। यह अलग बात कि उम्मीद जताई जा रही है कि बाइडन, ईरान के साथ संबंध सुधारेंगे लेकिन हालात गंभीर बने हुए थे यहां तक कहा जा रहा था कि ट्रम्प का सत्ताकाल समाप्त होने से पहले ईरान और अमेरिका एक दूसरे से टकरा सकते हैं।
नए साल की शुरुआत में अमेरिका ने अपन आधुनिक बमवर्षक विमान जहाँ खाड़ी में भेजे तो वहीं ईरान ने 20% यूरेनियम संवर्धन का ऐलान ही नहीं किया बल्कि दक्षिणी कोरिया का एक तेलवाहक जहाज़ भी रोक लिया। ईरान ने यह सब ऐसे हालात में किया था जब ट्रम्प की सत्ता के मात्र दो हफ्ते बचे थे और यूरेनियम संवर्धन में वृद्धि की घोषणा और दक्षिणी कोरिया के तेलवाहक जहाज़ को रोकने के बाद हालात ऐसे बन गए थे कि एक चिंगारी ही युद्ध भड़काने के लिए काफी थी।
मैथ्यू ली और लोलिता सी बेल्डोर जैसे विश्लेषकों का कहना है कि किसी रुख से ऐसा लगता तो नहीं कि अमेरिका ईरान पर हमले की योजना बना रहा है बल्कि खुद अमेरिका को यह चिंता सता रही है कि कहीं ईरान, इराक़, फार्स की खाड़ी या कहीं और उसके हितों पर कोई हमला शुरु न कर दे और ट्रम्प, उसका उत्तर दें और इस तरह से युद्ध शुरु हो जाए।
मैथ्यू ली का कहना है कि अमेरिका का विमानवाहक युद्धपोत जो अब तक इलाक़े में रुका है उसकी वजह से भी चिंता है। अमेरिकी युद्धपोत नीमित्ज़ की फारस की खाड़ी से वापसी के विषय पर कई हफ्तों तक विचार किया गया। कार्यक्रम यह था कि जनवरी से पहले यह युद्धपोत, अमेरिका वापस हो जाए लेकिन फिर अफगानिस्तान, इराक़ और सोमालिया से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की वजह से नीमित्ज़ की तैनाती को बढ़ा दिया गया।
दिसंबर में ईरान के साथ तनाव बढ़ने के साथ ही अमेरिकी सेंट्रल कमान ने फैसला किया था कि नीमित्ज़ को कहीं निकट ही रोके रखा जाए और फिर साल के अंतिम दिनों में मिलर ने अपने विमानवाहक युद्धपोत को वापस बुलाने की घोषणा की लेकिन उसके तीन दिन बाद कहा गया कि नीमित्ज़ फारस की खाड़ी में ही रहेगा।
नीमित्ज़ को रोके रखने की घोषणा के बाद जिस तरह से अमेरिकी रक्षा अधिकारी चौंक गये थे उससे पता चलता है कि यह फैसला पेंटागन में नहीं बल्कि व्हाइट हाउस में लिया गया था।
अमेरिका की मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी में राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ, विपिन नारंग का कहना है कि खाड़ी में नीमित्ज़ की तैनाती को जारी रखना, अमेरिका की शक्ति का प्रतीक होने से अधिक, वाशिंग्टन में हंगामों की वजह से पैदा होने वाली कमज़ोरी का सुबूत है यहां तक कि हालत यह है कि यह अमेरिका के खिलाफ हमला करने का हर दुश्मन के लिए सब से अच्छा अवसर है। नारंग के विचार में अमेरिका की ओर से किसी कार्यवाही की संभावना बहुत कम है।
बाइडन सरकार अगर ईरान के बारे में अमेरिकी नीतियों में बदलाव लाना चाहती है तो उसे बहुत से मतभेद, झड़पों और तनावों को खत्म करना होगा। बाइडन को सबसे पहले अपनी ईरान नीति को लेकर इस्राईल, सऊदी अरब और यूएई कोटटोलना होगा ताकि अमेरिका को दुविधा में न डालें.

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