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इस्लामोफोबिया का शिकार फ़्रांस मुसलमानों को मुजरिम बताने पर तुला

इस्लामोफोबिया का शिकार फ़्रांस मुसलमानों को मुजरिम बताने पर तुला  फ्रांस में दिन-प्रतिदिन सरकार के संरक्षण में इस्लाम फोबिया को हवा दी जा रही है।

इस्लाम फोबिया का शिकार फ्रांस की नेशनल असेंबली ने हाल ही में देश के मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध 1 और विवादास्पद कानून पास किया है। रिपोर्ट के अनुसार इस विधेयक के पक्ष में 49 मत पड़े, जबकि विरोध में सिर्फ 19 वोट पड़े जबकि 5 लोग गैर हाजिर रहे।

फ्रांस की नेशनल असेंबली में वामपंथी पार्टी के नेता ने इस कानून को अलोकतांत्रिक और मुस्लिम विरोधी बताया है।फ्रांस की मुख्य विपक्षी सोशल पार्टी और राइट विंग भी इस प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया।

याद रहे कि फ्रांस नेशनल असेंबली ने यह कानून इस अवस्था में पास किया है जब लगातार पिछले 1 वर्ष से मुसलमानों के खिलाफ देश में माहौल बनाया जा रहा है और सरकार के संरक्षण में इस्लामोफोबिया को हवा दी जा रही ह।

तुर्की की अनातोली न्यूज़ एजेंसी ने इस मुद्दे पर रिपोर्ट देते हुए कहा है कि फ्रांसीसी मुसलमान इस विवादास्पद एवं अलगाववादी है विधेयक को लेकर चिंतित हैं।

इस विधेयक पर प्रतिक्रिया देते हुए फ्रांस के एक नागरिक ने कहा कि अलगाववाद विरोधी विधेयक पूरी तरह से मुस्लिमों और इस्लामी सिद्धांत पर आस्था रखने वाले उन लोगों के विरुद्ध हैं जो अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं। यह विधेयक उन्हें सीमित करता है।

फ्रांस सरकार प्रयास कर रही है ताकि मुसलमानों को अपराधियों के रूप में प्रस्तुत किया जा सके और उन्हें सरकार समर्थित लोगों से अलग दिखाया जा सके। यह काम भविष्य में अन्य अल्पसंख्यक समूहों को भी निशाना बना सकता है।

आनातोली प्रेस ने फ्रांस के इस कदम पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मिथक कि फ्रांस मानवाधिकारों का समर्थन करने वाला देश है बहुत पहले दम तोड़ चुका है। यह देश नस्लवाद और इस्लामोफोबिया का प्रतीक बन चुका है अगर ऐसा ना होता तो फ्रांस की आबादी के 11% मुस्लिम समुदाय को ऐसे निशाना न‌ बनाया जाता।

फ्रांस की नेशनल असेंबली ने देश के मुख्य विपक्षी दलों समय दक्षिणपंथी और वामपंथी प्रतिनिधियों के विरोध के बावजूद भी इस अलगाववादी विरोधी विधेयक को पास कर दिया है।फ्रांस सरकार का दावा है कि उसने देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को मजबूत करने के लिए यह कानून पास किया है लेकिन सरकार आलोचकों का कहना है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करता है और मुसलमानों को हाशिए पर धकेलने का काम करेगा।

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