बर्लिन, जर्मनी: फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता के लिए “टॉर्च लाइट मार्च”
बर्लिन में फिलिस्तीनियों के समर्थन में टॉर्च लाइट मार्च के दौरान प्रदर्शनकारियों ने ग़ाज़ा पर इज़रायल के हमलों के खिलाफ विरोध किया और जर्मन सरकार की इज़रायल समर्थक नीतियों की आलोचना की। प्रदर्शनकारियों ने मानव जीवन की रक्षा, युद्ध-विराम और फिलिस्तीनी जनता के अधिकारों के लिए आवाज उठाई, साथ ही ग़ाज़ा में जारी मानवीय संकट पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने की मांग की।
मंगलवार को जर्मनी की राजधानी बर्लिन में सैकड़ों प्रदर्शनकारी फिलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता जताने के लिए टॉर्च लाइट मार्च में शामिल हुए, जिनके हाथों में मोमबत्तियां और लालटेनें थीं। यह विरोध ग़ाज़ा पट्टी पर इज़रायल के लगातार हमलों के खिलाफ आयोजित किया गया, जिसमें मानवीय जानों की हानि और जारी मानवीय संकट पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई। प्रदर्शनकारी बर्लिन के क्रूज़बर्ग क्षेत्र में स्थित होहेन श्टाफ़ेन स्क्वायर में एकत्र हुए, जहाँ से उन्होंने लालटेनें और मोमबत्तियां उठाकर हलीच टॉर सबवे स्टेशन की ओर मार्च किया। मार्च के दौरान माहौल फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में नारेबाज़ी से गूंजता रहा।
फिलिस्तीनी झंडा पकड़े प्रदर्शनकारियों ने “फिलिस्तीन की आज़ादी” और “आतंकवादी इज़रायल” जैसे नारे लगाए। प्रतिभागियों का कहना था कि उनका विरोध किसी भी जाति या धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि आम नागरिकों, विशेषकर बच्चों और महिलाओं पर हो रहे हमलों के खिलाफ है। प्रदर्शन के दौरान जर्मन सरकार की इज़रायल के समर्थन की भी आलोचना की गई। प्रदर्शनकारियों का मानना था कि, जर्मनी को मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के आधार पर निष्पक्ष भूमिका निभानी चाहिए और ग़ाज़ा में जारी मानवीय संकट पर स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए।
यह विरोध ऐसे समय में हुआ जब ग़ाज़ा में हालात गंभीर बने हुए हैं। अक्टूबर 2023 से जारी इज़रायली कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप लगभग 70,700 से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं, जबकि 171,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। भारी बमबारी के कारण ग़ाज़ा का बड़ा हिस्सा मलबे में बदल चुका है और लाखों लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। दुनिया के विभिन्न शहरों की तरह बर्लिन में भी यह प्रदर्शन व्यापक वैश्विक आंदोलन का हिस्सा था, जिसके तहत नागरिक युद्ध-विराम, मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करने की मांग कर रहे हैं। मानवाधिकार संगठन भी बार-बार नागरिक हत्याओं और बुनियादी ढांचे की तबाही पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं।

