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यमन में भारतीय नर्स का जान गंवाना दुखद: सुप्रीम कोर्ट

यमन में भारतीय नर्स का जान गंवाना दुखद: सुप्रीम कोर्ट

यमन में हत्या के मामले में दोषी ठहराई गई केरल की नर्स निमिषा प्रिया की फांसी की सजा मामले में सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि, निमिषा प्रिया की यमन में फांसी रोकने के लिए वह कुछ खास नहीं कर सकती है। नर्स को 16 जुलाई को फांसी दी जानी है। मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की बेंच ने की।

SC ने कहा कि मामला बहुत संवेदनशील है। अगर भारतीय नर्स यमन में जान गंवाती है तो यह दुखद होगा। इस दौरान केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कोर्ट में कहा कि सरकार जहां तक जा सकती थी, जा चुकी है। यमन जैसे देश के साथ भारत खुलकर कूटनीतिक दखल नहीं दे सकता।

अटॉर्नी जनरल की बातें सुनने के बाद कोर्ट ने सुनवाई शुक्रवार (18 जुलाई, 2025) के लिए टाल दी। कोर्ट ने सरकार और याचिकाकर्ता से कहा कि वह अगली तारीख को उसे स्थिति से अवगत कराएं। ‘सेव निमिषा प्रिया एक्शन काउंसिल’ नाम की संस्था ने कहा है कि यमन के कानून में हत्या की सजा खत्म करने का प्रावधान है। मृतक का परिवार दोषी पक्ष से समझौते और नकद भुगतान के बाद हत्यारे को माफ कर सकता है। ऐसे में अगर केंद्र सरकार दखल दे तो समाधान निकल सकता है।

निमिषा प्रिया पर 2017 में यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या का दोष सिद्ध हुआ है। 2020 में उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी। याचिका दाखिल करने वाली संस्था ने बताया है कि 37 साल की निमिषा खुद एक पीड़िता है। महदी ने लंबे समय से उसका पासपोर्ट जब्त कर रखा था। वह लगातार उसे प्रताड़ित कर रहा था।

याचिकाकर्ता संस्था ने कहा है कि जिस दौरान निमिषा का पासपोर्ट महदी ने अवैध तरीके से जब्त कर रखा था, तब उसने कानूनी सहायता प्राप्त करने की कोशिश की,  लेकिन सफल नहीं हो पाई। निमिषा ने अपना पासपोर्ट हासिल करने के लिए उसे नींद का इंजेक्शन दिया, लेकिन उसकी मृत्यु हो गई। उसका हत्या का कोई इरादा नहीं था।

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