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अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद, ईरान को बातचीत का न्योता

अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद, ईरान को बातचीत का न्योता

संयुक्त राष्ट्र द्वारा ईरान पर फिर से प्रतिबंध लागू किए जाने के बाद अमेरिका ने ईरान को सीधी बातचीत की पेशकश की है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने शनिवार को कहा कि ईरान को तुरंत अमेरिका के साथ नीयत से बातचीत करने के लिए तैयार होना चाहिए। रुबियो ने अपने बयान में कहा कि कूटनीति का रास्ता अब भी खुला है और किसी समझौते तक पहुँचना ईरानी जनता और दुनिया दोनों के लिए लाभकारी होगा।

उनके अनुसार, यह तभी संभव है जब ईरान गंभीरता से और बिना समय गंवाए बातचीत के लिए तैयार हो। उन्होंने अन्य देशों से भी अपील की कि, वे तुरंत ईरान के ख़िलाफ़ लगाए गए प्रतिबंधों पर अमल करें।

यह घटनाक्रम उस समय सामने आया जब शनिवार शाम ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध दोबारा लागू कर दिए गए। यह क़दम इसलिए उठाया गया क्योंकि तेहरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम से जुड़े वादों का पालन नहीं किया था। प्रतिबंध ‘स्नैप-बैक मैकेनिज्म’ के तहत लागू किए गए, जिसे फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने पिछले साल अगस्त के आखिर में सक्रिय किया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस क़दम को मंजूरी दी जबकि रूस और चीन समयसीमा बढ़ाने में नाकाम रहे।

इस प्रतिबंध के दोबारा लागू होने के बाद अमेरिकी और यूरोपीय दोहरे मापदंड का नया नमूना सामने आया है। संयुक्त राष्ट्र की आड़ में ईरान पर एक बार फिर कठोर प्रतिबंध थोप दिए गए, जबकि गाज़ा में इज़रायल द्वारा किए गए खुले नरसंहार और हज़ारों मासूमों की हत्या पर अब तक किसी भी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया गया। यह साफ़ दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ पश्चिमी ताक़तों के दबाव में केवल राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल होती हैं।

सवाल यह है कि अगर ईरान पर परमाणु समझौते के बहाने इतनी कड़ी कार्रवाई की जा सकती है तो इज़रायल पर, जिसने अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवीय मूल्यों को रौंद दिया, आज तक कोई प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया गया? यह दोहरा रवैया ही बताता है कि अमेरिकी और यूरोपीय ताक़तों की “इंसाफ़” की बातें केवल छलावा हैं।

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