12 मुस्लिमों के 18 साल, उस जुर्म में जेल में गुज़रे, जो उन्होंने किया ही नहीं: ओवैसी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट मामले में दोषी ठहराए गए 12 मुस्लिम आरोपियों को बरी कर दिया। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में नाकाम रहा है।इस फैसले के बाद एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार को आड़े हाथों लिया और 12 बेगुनाह मुस्लिमों की 18 साल की बर्बाद हुई ज़िंदगी पर कड़े सवाल उठाए। ओवैसी ने पुलिस की जांच और पूरी व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करते हुए पूछा कि, क्या अब सरकार उन जांच अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी जिन्होंने इस केस की जांच की थी?
ओवैसी ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा:
“12 मुस्लिमों ने 18 साल उस जुर्म के लिए जेल में बिता दिए जो उन्होंने कभी किया ही नहीं। उन्होंने अपनी ज़िंदगी के सबसे कीमती साल खो दिए।”
उन्होंने आगे कहा:
“जिन 180 परिवारों ने इन धमाकों में अपनों को खोया, जो घायल हुए – उन्हें भी कोई इंसाफ नहीं मिला। क्या सरकार अब महाराष्ट्र ATS के उन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करेगी, जिन्होंने ये केस हैंडल किया था?”
ओवैसी ने 2006 में राज्य में सत्ता में रही पार्टियों पर भी आरोप लगाया कि उन्होंने हिंसा और पुलिस की ज्यादती की शिकायतों को नज़रअंदाज़ किया। उन्होंने कहा कि, अक्सर बेगुनाहों को जेलों में ठूंस दिया जाता है और जब सालों बाद वो बरी होते हैं तो उनके पास न तो कोई सहारा होता है, न ही ज़िंदगी दोबारा शुरू करने का कोई ज़रिया।
ओवैसी ने बताया कि ये वो आरोपी हैं जो गिरफ़्तारी के बाद 17 सालों तक कभी भी जेल से बाहर नहीं आए। उन्होंने कहा कि जब कोई मामला हाई-प्रोफाइल होता है और जनता में आक्रोश होता है तो पुलिस बिना सही सबूतों के कार्रवाई करती है और मीडिया रिपोर्टिंग भी आरोपियों को पहले ही दोषी बना देती है। अंत में ओवैसी ने कहा कि “ऐसे कई आतंकी मामलों में जांच एजेंसियां बुरी तरह नाकाम रही हैं और बेगुनाहों की ज़िंदगियां बर्बाद हुई हैं।”

