हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए नए गठबंधन की योजना की इमैनुएल मैक्रों नहीं लगी भनक
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुक़ाबिला करने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया के बीच बने नए गठबंधन (एयूकेयूएस) की सारी भूमिका जून में ब्रिटेन के कार्नवल में हुए जी-7 सम्मेलन में ही तैयार कर ली गई थी। हालाँकि इस सम्मेलन में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों मौजूद थे और लेकिन उनको इसके बारे में भनक भी नहीं लगी थी ।
इस गठबंधन में शामिल न होने से फ्रांस नाराज़ है जिस कारन ‘द टेलीग्राफ’ की एक रिपोर्ट के अनुसार उसने जी-7 सम्मेलन में नए गठबंधन पर वार्ता के दौरान ही फ्रांस के पनडुब्बी सौदे को रद करने का फैसला ले लिया गया था।
उस समय ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश मंत्री डोमिनिक राब ने चेतावनी भी दी थी कि इससे चीन और फ्रांस दोनों से ही संबंधों पर बुरा असर पड़ सकता है लेकिन इस त्रिपक्षीय गठबंधन के संबंध में किसी से भी बातचीत नहीं की गई और गठबंधन को लेकर हुई वार्ता को ‘टाप सीक्रेट’ के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया।
गार्जियन ने भी कुछ ऐसे ही रिपोर्ट देते हुए कहा है कि अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया के बीच महीनों से इस गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही थी लेकिन फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों को कोई संदेश नहीं दिया गया कि उनका पनडुब्बी सौदा रद किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा की मौजूदा जरूरतों को रेखांकित करते हुए एक नए गठबंधन एयूकेयूएस का गठन किया है। इस गठबंधन के तहत आस्ट्रेलिया ने फ्रांस से पनडुब्बी सौदा रद करने के बाद अब ये पनडुब्बी अमेरिका से लेने का फैसला किया है।
फ्रांस ने सौदा रद होने के विरोध में अमेरिका और आस्ट्रेलिया दोनों ही देश से अपने राजदूत वापस बुला लिए हैं। यह नया गठबंधन अगले 18 महीनों में आस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बियों से लैस करेगा। तीनों देशों में तकनीक का आदान-प्रदान तेजी से होगा।
समाचार एजेंसी एपी की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच नया गठबंधन एएनजेडयूएस गठबंधन के ठीक सत्तर साल पूरा होने पर बना है। एएनजेडयूएस प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए बना पुराना गठबंधन है। यह 1951 में बनाया गया था और इसमें न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और अमेरिका थे। अब इस नए गठबंधन से न्यूजीलैंड को बाहर कर दिया गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें नया बस इतना ही है कि केवल न्यूजीलैंड को बाहर कर ब्रिटेन को शामिल किया गया है। नए संगठन को बनाने में न्यूजीलैंड सहित कई देशों को इसकी जानकारी नहीं दी गई। विशेषज्ञों इस बात को भी मानते हैं का मानना है कि इस संगठन के बनने के बाद आस्ट्रेलियाई समुद्री क्षेत्र में व्यापक प्रभाव पड़ेगा।