चीन के जाल में फंस गए 58 देश, क़र्ज़ बांटकर ड्रैगन ने किया कब्जा दुनिया भर के 58 से अधिक देश चीन के जाल में फंसे हुए हैं।
चीन ने अभी तक आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक से भी अधिक लोन कई देशों को दिया है। सवाल उठता है कि आखिर चीन के कब्जे में किस तरह कर्ज लेने वाले देश फंस जाते हैं। चीन की वह गुप्त शर्तें क्या होती हैं जिन के जाल में कर्ज लेने वाले देश फंस जाते हैं और इन शर्तों को जानने के बावजूद भी वह कर्ज लेने के मोह से बच नहीं पाते हैं।
वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ ने मिलकर अब तक दुनियाभर में जितने लोन बांटे हैं उससे अधिक अकेले चीन ने कई देशों को दिया है। भारत की कुल जीडीपी भी उतनी नहीं है जितना चीन अलग-अलग देशों को कर्ज के रूप में दे चुका है। भारत की जीडीपी से दोगुना रुपए चीन ने विभिन्न देशों को कर्ज के रूप में दिया है।
चीन से कर्ज लेने वाले अधिकांश देश इतने छोटे हैं कि वह चीन के जाल को काटने के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं। 2020 में जारी की गई एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन अभी तक 5.6 ट्रिलियन डॉलर का लोन अलग-अलग देशों को विकास के नाम पर दे चुका है और यह रकम भारत की अर्थव्यवस्था के दो बराबर है।
द्विपक्षीय संबंधों के नाम पर दुनिया भर में जितना भी लोन दिया गया है उसका 65 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अकेले चीन ने बांटा है। इससे आसानी से समझा जा सकता है कि चीन छोटे-छोटे देशों को किस तरह अपने कर्ज के बोझ तले दबा लेता है। चीन सरकार ने 2017 में एक व्हाइट पेपर जारी करते हुए बांटे गए लोन को इंटरनेशनल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन कहा था।
चीन सरकार ने अपने देश की जनता को बताया था कि जो लोन अलग-अलग देशों को बांटा गया है साउथ साउथ कोऑपरेशन का हिस्सा है जो वैश्विक समुदाय का जिम्मेदार देश होने के नाते चीन का कर्तव्य बनता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि वास्तविकता इससे अलग है। पाकिस्तान और श्रीलंका समेत दुनिया के 58 देश चीन के कर्ज में बुरी तरह दबे हुए हैं।
पिछले दिनों द टाइम्स ऑफ इस्राईल ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें चीन द्वारा दिए गए कर्ज को लेकर विवरण दिया गया था। इस रिपोर्ट में चीन सरकार की कर्ज नीति को लेकर लिखा गया है कि जो कर्ज चीन देता है वैश्विक कल्याण के लिए बताता है और कहता है कि लोन देने का उसका उद्देश्य विश्व स्तर पर सार्वजनिक तौर पर अच्छा काम करना है और वैश्विक समुदाय का जिम्मेदार देश होने के नाते यह सब काम कर रहा है। लेकिन अगर आप गहराई से स्थिति को देखेंगे तो पाएंगे चीनी क़र्ज़ खतरनाक है जिसमें फंसनेवाला देश कभी नहीं निकल सकता।
चीन की शर्त को मानने वाला देश क़र्ज़ लेने के साथ ही अस्थिर हो जाता है और वहां की राजनीति पर अप्रत्यक्ष रूप से चीन का कब्जा हो जाता है। यानी चीन क़र्ज़ लेने वाले देश की संप्रभुता पर हावी हो जाता है। चीन जो कर्ज बांटता है उसका 60% हिस्सा कर्म कमर्शियल होता है और उसमें कोई छूट नहीं होती। यह बहुत बड़ा धोखा है।
चीन क़र्ज़ देने से पहले ही यह सुनिश्चित कर लेता है कि यह लोन किसी भी पब्लिक वेलफेयर के काम में नहीं लाया जाएगा। सच्चाई यह है कि चीन कर्ज देकर भी अपना ही विकास करता है। जिसका सबसे स्पष्ट उदाहरण पाकिस्तान है। चाइना पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर (सीपीईसी) में जो काम हुआ है उसके लिए चीन ने पाकिस्तान को भारी ब्याज पर कर्ज दिया है लेकिन कर्ज लेने के बाद भी पाकिस्तान में जो काम हो रहा है उसमें काम करने वाले मजदूर भी चीन के हैं जिसको लेकर पाकिस्तान में भारी विरोध प्रदर्शन हो रहा है।
यही काम श्रीलंका में भी बीजिंग कर चुका है। कोलंबो बंदरगाह के लिए श्रीलंका ने चीन से कर्ज लिया। यहां काम करने वाले सारे मजदूर भी चीन के ही हैं। इस बंदरगाह पर चीन के ही जहाज़ आते जाते हैं और श्रीलंका अपने ही बंदरगाह को प्रयोग नहीं कर सकता।
द टाइम्स ऑफ इस्राईल ने एक सनसनीखेज विस्तृत रिपोर्ट “हाउ चाइना लैंड्स ए रेयर लुक इन 100 डेब्ट कॉन्टैक्ट्स विद फॉरेन गवर्नमेंट्स शीर्षक के साथ अप्रैल 2021 में प्रकाशित की थी।
चीन कर्ज देने के लिए जो शर्ते रखता है वह काफी कठोर होती हैं। जिसमें सबसे बड़ी शर्त गोपनीयता की होती है। यानी कर्ज लेने वाला देश इन शर्तों का चाह कर भी खुलासा नहीं कर सकता। चीन ने किन शर्तों पर क़र्ज़ दिया है और ब्याज कितना चुकाना होगा यह बताने की भी अनुमति नहीं है। यह सीधे तौर पर ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनामिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के नियमों का उल्लंघन है।