अमेरिकी रक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर युद्ध मंत्रालय किया गया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाते हुए रक्षा मंत्रालय (Department of Defense) का नाम बदलकर युद्ध मंत्रालय (Department of War) कर दिया है। यह फैसला एक कार्यकारी आदेश (Executive Order) के तहत लिया गया है और इसका सीधा संबंध ट्रंप की उस सोच से है जिसमें वे अमेरिका की सैन्य शक्ति और आक्रामक नीतियों को ज़्यादा स्पष्ट और वास्तविक रूप में पेश करना चाहते हैं।
दरअसल, ट्रंप ने पिछले हफ़्ते व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था कि – “हम इसे रक्षा मंत्रालय कहते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि हमें इसका नाम बदलना चाहिए। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे युद्ध मंत्रालय कहा जाता था और मेरी नज़र में यही नाम असली और सच्चाई के करीब है।” उनके इस बयान से पहले ही अमेरिकी मीडिया ने क़यास लगाए थे कि, राष्ट्रपति मंत्रालय का नाम बदल सकते हैं।
ग़ौरतलब है कि अमेरिका में 1789 से लेकर द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक इस संस्था को युद्ध मंत्रालय के नाम से ही जाना जाता था। लेकिन 1949 में इसका नाम बदलकर रक्षा मंत्रालय कर दिया गया ताकि यह संदेश दिया जा सके कि अमेरिका अब युद्ध की जगह “रक्षा और सुरक्षा” पर ज़्यादा ध्यान दे रहा है। ट्रंप का यह कदम उसी पुराने दौर की याद को ताज़ा कर देता है जब अमेरिका अपनी वैश्विक सैन्य ताक़त को खुलकर “युद्ध मंत्रालय” के नाम से चलाता था।
आज यह मंत्रालय अमेरिकी संघीय सरकार का सबसे बड़ा संस्थान है, जिसके अधीन 3.4 मिलियन से अधिक सैन्य और असैन्य कर्मचारी काम करते हैं। यह मंत्रालय अमेरिकी सेना की छह शाखाओं की निगरानी करता है – थल सेना, मरीन कोर, नौसेना, वायुसेना, अंतरिक्ष सेना और कोस्ट गार्ड। साथ ही, नेशनल गार्ड और कई महत्वपूर्ण खुफिया व सुरक्षा एजेंसियां भी इसी मंत्रालय के अधीन हैं, जिनमें रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA), राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NSA) और रक्षा ख़तरा कमी एजेंसी (DTRA) जैसी संस्थाएं शामिल हैं।
हालांकि अभी तक यह साफ़ नहीं है कि इस नाम बदलने से मंत्रालय की संरचना, नीतियों या उसकी एजेंसियों के कामकाज पर कोई बड़ा असर पड़ेगा या नहीं। लेकिन अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि इस बदलाव का प्रतीकात्मक महत्व बहुत बड़ा है। अमेरिकी पत्रिका न्यूज़वीक ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि ट्रंप के इस कदम से साफ़ होता है कि वे अमेरिका की रक्षा नीतियों को और अधिक आक्रामक रूप में ढालना चाहते हैं और दुनिया के सामने अमेरिका को “सिर्फ़ रक्षक नहीं बल्कि योद्धा” के रूप में पेश करना चाहते हैं।

