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ग़ाज़ा से इज़रायली बस्तियों पर रॉकेट हमला 

ग़ाज़ा से इज़रायली बस्तियों पर रॉकेट हमला 

क़रीब दो साल के लंबे अंतराल के बाद ग़ाज़ा युद्ध की यादें एक बार फिर ताज़ा हो गईं। फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों ने रविवार की सुबह इज़रायल के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से को निशाना बनाते हुए कई रॉकेट हमले किए। अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी फ़ार्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ग़ाज़ा पट्टी से कम से कम तीन रॉकेट इज़रायली शहर अशदोद और अस्कलान की तरफ़ दागे गए।

इन हमलों की अहमियत इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि ग़ाज़ा पट्टी पिछले दो साल से लगातार सख़्त नाकाबंदी के हालात में है। इस अवधि में इज़रायल ने कई बार हवाई हमले किए, ज़मीनी अभियान चलाए और मानवीय आपूर्ति पर कड़ा नियंत्रण रखा। इसके बावजूद फ़िलिस्तीनी समूहों ने यह दिखा दिया कि, उनकी मिसाइल और रॉकेट फ़ायरिंग की क्षमता अब भी बरक़रार है।

हमले की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गए हैं। इनसे यह स्पष्ट दिखाई देता है कि कम से कम एक रॉकेट, इज़रायल के आयरन डोम और अन्य डिफ़ेंस सिस्टम को चकमा देते हुए सीधे अशदोद के पास स्थित नित्सान इलाके में जा गिरा। इस घटना ने न केवल सुरक्षा एजेंसियों को हैरान कर दिया बल्कि स्थानीय निवासियों में भी दहशत फैल गई।

इज़रायली अधिकारियों ने दावा किया कि रॉकेट उत्तरी ग़ाज़ा से दागे गए थे। वहीं, इज़रायली सेना ने बयान जारी कर कहा कि रॉकेट अशदोद के पास खुले क्षेत्र में गिरा और किसी बड़े नुकसान की सूचना नहीं है। यह कोई पहला अवसर नहीं है जब इज़रायल किसी भी प्रकार के नुकसान से इंकार कर रहा है। इज़रायल अपनी ताक़त के भ्रम को बाक़ी रखने के लिए हमेशा अपने ऊपर होने वाले हमले के नुकसान को छुपाता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि, हो सकता है यह हमला इज़रायली सेना कराया हो ताकि, इसके बहाने ग़ाज़ा पर और ज़्यादा वहशियाना हमला किया जा सके, और ग़ाज़ा नरसंहार का विरोध करने वाले देशों की सहानुभूति हासिल की जा सके, और इसके द्वारा जान आक्रोश को दबाया जा सके। स्वतंत्र सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि इस हमले ने इज़रायल की सुरक्षा तैयारियों पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

ग़ाज़ा की ओर से आने वाले ऐसे हमले इस बात की याद दिलाते हैं कि वहाँ का प्रतिरोध अब भी पूरी तरह से दबाया नहीं जा सका है। पिछले वर्षों में इज़रायल ने ग़ाज़ा को बार-बार निशाना बनाया, लेकिन छिटपुट रॉकेट हमले जारी रहना इज़रायली रणनीति की विफलता को दर्शाता है।

फ़िलिस्तीनी सूत्रों का कहना है कि यह हमला इस बात का प्रतीक है कि प्रतिरोध चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति में क्यों न हो, अपने अस्तित्व और अधिकारों की लड़ाई को जारी रखेगी। वहीं इस्राइल के लिए यह एक चेतावनी है कि, ग़ाज़ा को पूरी तरह चुप कराना संभव नहीं। इस रिपोर्ट से साफ़ झलकता है कि, ग़ाज़ा में जारी नाकाबंदी, मानवीय संकट और लगातार सैन्य दबाव के बावजूद फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध की ज्वाला अब भी जल रही है और यह संघर्ष निकट भविष्य में थमने वाला नहीं दिखता।

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