ईरान परमाणु समझौता: जो बाइडेन की मध्य पूर्व के साथियों के साथ मुश्किलें बढ़ीं

यरुशलम पोस्ट के अनुसार 2015 में हुए समझौतों ने अमेरिका और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों के संबंधों पर गहरा असर डाला है।

अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने ईरान के साथ हुए 2015 के परमाणु समझौते में अमेरिका की दोबारा वापसी के लिए नए नियम, शर्तें व मापदंड लागू किए है।

अमेरिकी विदेश मंत्री टोनी ब्लिंकेन ने परमाणु समझौते में अमेरिका की वापसी का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह वापसी बहुत लंबा सफर तय कर सकती है।

हालांकि यह शर्तें अमेरिकी सहयोगियों की उम्मीदों पर पूरी नहीं उतरती हैं ,इस्राईल द्वारा परमाणु समझौते में वापसी के विचार को नकारा जाना इसका एक उदाहरण है।

इस्राईल ने यहां तक कहा है कि यदि अमेरिका परमाणु समझौते में शामिल होता है तो वह ईरान पर सैन्य हमले कर सकता हैं।

हालांकि इस्राईल द्वारा ईरान को दी गई यह धमकियां कोई नई बात नहीं है,ये दोनों देश वर्षों से मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा रहे हैं।

इसके अलावा अमेरिका के सहयोगी खाड़ी देश इस बात को स्वीकारते हैं कि परमाणु समझौते में कुछ त्रुटियां हैं और ईरानी मुल्ला इस सियासत का फायदा उठा रहे हैं।

2015 के परमाणु समझौते के बाद उनका विस्तार हुआ और अरब के एक बड़े हिस्से पर ईरान ने कब्ज़ा कर लिया। ईरान ने कहा है कि उसने चार अरब राजधानियों पर कब्जा कर लिया है और जल्दी ही पांचवां कब्जा करना चाहता है।
समस्या परमाणु समझौते में अमेरिका की वापसी की नहीं है, बल्कि इससे कहीं अधिक गहरी है। यह समझौता

अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच एक अच्छी शुरुआत है, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों को तोड़ने से ज़्यादा यह अमेरिका और उसके सहयोगियों के हितों का मुद्दा है।

याद रहे कि बाइडेन की टीम का मकसद भी वही है जो ट्रम्प ईरान के साथ चाहते थे,बस दोनों के तरीक़े अलग अलग हैं।

हालांकि बाइडेन प्रशासन के पास अब बातचीत करने का फायदा है, यह फायदा ईरान शासन पर ट्रम्प द्वारा दबाव की रणनीति का नतीजा है। अब इसको ऐसे फॉर्मूला से फायदेमंद बनाया जाना चाहिए जो कि एक तरफ राजनीतिक शोषण और दूसरी तरफ समझौते को बचाने की बाइडन की इच्छा को संतुलित करता हो।

परमाणु समझौते में अमेरिका की वापसी पर टोनी ब्लिंकेन ने कहा कि ईरानी शासन को इस समझौते की शर्तों को मानना होगा और उनका अनुपालन करना होगा।

आखिरकार यह स्पष्ट है कि 2015 के परमाणु समझौते के कारण अमेरिका के संबंध उसके सहयोगियों से अस्थिर हुए हैं। इससे यह साफ है कि इस स्थिति से निपटने के लिए ईरानी शासन से बातचीत करना किसी भी नई अमेरिकी योजना का लक्ष्य होना चाहिए।

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